Saturday, May 30, 2020

पांच परमेश्वर ,दो मशीनें


सरस्वती एक बड़ा ही आम सा ,
साधारण सा किरदार है

अगर आपने कभी भी अपनी दादी-नानी के जीवन को सुना होगा तो पाएंगे की
उस समय की हर दुसरी-तीसरी लड़की में कम या ज्यादा
पर थोड़ी सी सरस्वती तो हर किसी में मौजूद है

सरस्वती करीब 1930 में एक साधारण से परिवार में जन्मी
15 -16 वर्ष की उम्र में ब्याह दी गयी
अब पांच जमात तक पढ़ गयी थी
खाना बनाना, चौका-बर्तन
सिलना,काढ़ना भी सीख लिया था
पांच छोटे भाई बहन भी थे ,
तो माँ कैसे बनते हैं
वो ट्रेनिंग भी पूरी हो चुकी थी
अब और क्या बाकी था सीखने करने को
एक मशीन बिलकुल तैयार हो चुकी थी
बच्चे पैदा करने -पालने
और घर का चौका-चूल्हा सँभालने लायक भर
तो ब्याह दी गयी
अपने से करीब दस वर्ष बड़े सजातीय को

पति साक्षात परमेश्वर थे
दिन में नौकरी करना
शाम होते ही अन्य देवताओ की तरह रोज़ सोमरस पान
और अन्य स्त्रियों का उद्धार
अब भद्र पुरुषों को इन सभी पुण्य कर्मों की इज़ाज़त तो हर धर्म में है

पर हाँ परमेश्वर आये चाहे देर रात
या अगले दिन सुबह तड़के
अपना पति धर्म निभाना वो कभी नहीं भूलते थे
सो एक के बाद एक 8 संताने वो भी केवल अगले 12 वर्षों में
उन्होंने सरस्वती की झोली में डाल दी थी
उनकी कृपा से सरस्वती की झोली इतनी भरी इतनी भरी की
बस अब फटी बस तब फटी
वैसे सरस्वती को ज्यादा परेशानी बस 4 बच्चो तक ही हुयी
क्युकी उसके बाद तो सबसे बड़ी बेटी शारदा
सात बरस की हो गयी थी तो
एक और छोटी सी मशीन तैयार हो रही थी
उसे भी तो आखिर जल्द ही तैयार होकर पराये घर जाना था
तो आने वाले बच्चे भी पले जा रहे थे
और शारदा की ट्रेनिंग भी हो रही थी
सब कुछ शान्तिपूर्वक और पूर्वनियोजित ढर्रे पर चल रहा था

बस थोड़ी सी परेशानी ये शुरू हुयी की अब
घर में खाने वाले 12 लोग हो गए
(सास-ससुर भी तो थे )
पति परमेश्वर तो पहले ही सोमरस के दीवाने थे तो कुछ
उनकी सोमरस के प्रति दीवानगी थी
और कुछ पर-स्त्रियों का उद्धार करते रहने का
उनका कर्तव्य
कमाई लगातार गिरती जा रही थी
खर्चा बढ़ता जा रहा था
तो उसका भी रास्ता ये निकला
के सरस्वती के दहेज़ में आयी सिलाई मशीन से
जिसने अब तक बस सारे परिवार के ही बच्चों-बड़ों के सारे कपडे सीए थे
उसको भी और काम दिया गया
अब उसने सारे पड़ोस के बाल-बच्चों के कपडे,
स्त्रियों के ब्लाउज़, पेटीकोट, पुरुषों के कच्छे
भी सीने शुरू कर दिए थे
अब घर में ढाई मशीनें थी
डेढ़ हाड मांस की और
एक लोहे की
बहुत कुछ ज्यादा फ़र्क़ तो नहीं आया था
बस इतना था के ये ढ़ाई मशीनें दिन के चौबीस घंटे काम कर रही थी

समय एक मंथर गति से बीत रहा था
चारों बेटे पांचवी के बाद छठी कक्षा में
और बेटियां सरस्वती के ट्रेनिंग स्कूल में
दाखिला ले रहे थे
एक समय तो ऐसा अच्छा भी आया की घर में छ: मशीनें हो गयी थी
पांच हाड-मांस की और एक लोहे की
इन सब में जान हलकान हो रही थी लोहे वाली मशीन की
उसको तो कोई दम ही नहीं मिल रहा था
कभी सरस्वती ,कभी शारदा,कभी छुटकी ,कभी बड़की ,कभी मंझली
ये पाँचो ने उसका जीना मुहाल किया हुआ था
एक उठती थी तो दुसरी बैठती थी ,फिर तीसरी,चौथी,पांचवी
वैसे उस वक़्त का लोहा भी कमाल का ही रहा होगा
और हाड-मांस तो उस लोहे से कहीं आगे
इतने सालों लगातार ये सिलाई मशीन बिना रुके दिन-रात चलती ही जा रही थी
जैसे सरस्वती के साथ-साथ ,
पूरे परिवार का बोझ उठाने का सारा ठेका इसी ने लिया हुआ हो

अच्छे दिनों का ये क्रम टूटा शारदा की शादी से
पहले वो अपने घर गयी
फिर उसके बाद एक-एक करके सारे लड़के अपनी पढ़ाइयों के लिए पास के शहर में
और लड़कियाँ अपनी ट्रेनिंग पूरी करते ही
किसी पराये घर की मशीन बनने

अब घर में बस दो मशीनें और एक टूटा हुआ बीमार परमेश्वर रह गया था
उसके शरीर ने बहुत उद्धार किये थे
देवता होने का फ़र्ज़ भी खूब शिद्दत से निभाया था तो
अब काफी थक गया था
तो अब सारा दिन घरपर पर ही रहकर
सरस्वती को दिव्य ज्ञान दिया करता
वैसे ठीक ही चल रहा था
दो मशीने थी और खाने वाले भी बस तीन ही रह गए थे
( क्युकी अब तक सास-ससुर स्वर्ग का आनंद उठा रहे थे )
तो खाना का इंतज़ाम तो हो ही जाता था

दिक्कत तब होती थी जब
अलग-अलग शहरों में रह रहें चारोँ छोटे परमेश्वरों में से कोई सरस्वती को याद करता
पर पता नहीं ऐसा क्या इत्तेफ़ाक़ था की
ऐसा तभी होता जब उनकी पत्निया पेट से होती
हर बार उन दो महीनों में सरस्वती को तो कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता था
क्युकी उसके लिए तो ये रोज़ जैसा ही होता था
वही मशीनी जीवन ,
अब मशीन दिल्ली में चले या मुंबई में
क्या फ़र्क़ पड़ता है
बड़े परमेश्वर के घर नहीं तो छोटे परमेश्वरों के घर ही सही
पर उन दिनों में बड़े परमेश्वर बड़े व्याकुल हो जाते थे
उनको अकेले खुद अपना खाना बनाना,कपडे धोना जो करना पड़ता था  ,

अब कहाँ परमेश्वर और कहाँ ये सब तुच्छ काम...

ऐसी ही एक बार जब सरस्वती अपने तीसरे नंबर के परमेश्वर के यहाँ बच्चा जनवाने में थी
तो खबर आयी
बड़े परमेश्वर चले गए
तब चारों छोटे परमेश्वर ,चारों छोटी मशीनें और उनके बड़े-छोटे सारे परमेश्वर-मशीनें एकत्रित हुए थे
संस्कार हो गया था
सरस्वती की सारी छोटी मशीने जा चुकी थी
बैठक में सरस्वती के चारों छोटे परमेश्वर आपस में बात कर रहे थे

छोटे परमेश्वर 1 -" मैं ले तो जाता पर मुंबई में 4 ही कमरे का ही तो फ्लैट है
                           एक हमारा, दो बच्चों के ,एक गेस्ट रूम , 
                           अब जैसे हम पले इस दबड़े में वैसे अपने बच्चों को तो नहीं पाल सकते ना "

छोटे परमेश्वर 2 - "दिल्ली तो तुम जानते ही हो ,
                           कितना पोलुशन है वहां
                           माँ को सांस की बीमारी है
                           अब माया भी कितनी एलर्जिक है
                           और वैसे भी दोनों की...
                           तुम लोग तो जानते ही हो "

छोटे परमेश्वर 3 - "मैं ले जाता हूँ
                           पर मेरी एक शर्त है
                           इस मकान को बेच कर सारा पैसा मैं लूंगा
                           बाकी तुम लोग देख लो  "

ये सुनते ही चौथा छोटा पमेश्वर जो अब तब तीनों बड़े भाइयों को शांति से सुन रहा था,
सात साल में पहली बार भारत आया था
चीखते हुए बोला -
                            "कितने कमीने हो तुम तीनों
                             मैं अगर अमेरिका में ना रह रहा होता ना
                             तो मैं माँ को कभी यहाँ नहीं छोड़ता
                             अरे मैं तो दूर हूँ , विदेश में हूँ  ,आ नहीं सकता
                             पर तुम तो यहीं हों ना
                             जब भी माँ को फोन करता हूँ ,
                             बीमार होती है
                             तुम में से कोई डॉक्टर को भी नहीं दिखाता उसे "

और उसके बाद सरस्वती के वो चारों छोटे परमेश्वर ,
जोर-जोर से चीख-चीख कर एक-दूसरे को जाने क्या-क्या दिव्य ज्ञान देने लगे

अंदर कमरे में खड़ी सरस्वती ने मुड़ कर अपनी सिलाई मशीन की तरफ देखा
सिलाई मशीन तो पहले से ही एकटक उसी की ओर देख रही थी
दोनों सखी एक दूसरे को देख कर हँसी
एक पूरा युग साथ बिताया था उन्होंने
दोनों एक-दूसरे के मन का कहा-अनकहा खूब समझती थीं
मन ही मन दोनों ने अपनी-अपनी हाड-हड्डियों का परीक्षण-निरीक्षण किया
दोनों ने बस इतना ही सोचा

अभी और कुछ साल साल चलना होगा।
                           






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