Friday, May 22, 2020

प्रवासी, भाग-4

प्रवासी, भाग-4
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"कालका मेल" में बिताई वो रात बहुत काली थी
रज्जन जैसे एक गहरी अंधेरी सुरंग में था
और मीलों तक रौशनी की कोई किरण भी ना दीखती थी
अगले दिन देर शाम करीब 8 बजे "कालका मेल" खुर्जा जंक्शन पर पहुंची
(यहाँ से उसका गांव जहांगीरपुर बस 18 किलोमीटर दूर था )
थके क़दमों के साथ रज्जन उस ट्रैन से उतरा
प्लेटफार्म पर गहरा सन्नाटा था
वो सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया
कलकत्ता में बिताया एक-एक दिन किसी मूवी की तरह उसकी आँखों के सामने चल रहा था
कलकत्ता शहर, उसका अपना ऑफिस, रूस यात्रा और सबसे ज्यादा शुचित्रा ...
उसने सोचा - "ऐसे हार के मैं गांव कैसे ....
"नहीं ऐसे तो मैं गांव वापिस नहीं जा सकता "
इधर ट्रैन चल पडी थी
इससे पहले की "कालका मेल " खुर्जा जंक्शन का प्लेटफार्म छोड़ती
रज्जन ने दौड़कर फिर से वो ट्रैन पकड़ ली
अपने नए प्रवास की और
"दिल्ली"
(जैसा की मैंने आपको पहले भी बताया था की  "कालका मेल"
कलकत्ता-खुर्जा जंक्शन-दिल्ली-कालका ,इस तरह चलती है)

दिल्ली रैलवे स्टेशन पहुंच कर रज्जन वेटिंग रूम में गया
अच्छे से मल-मल कर नहाया
जैसे वो अपने सारे दुःख,सारे अवसाद अपने दिल-दिमाग,
आत्मा से खुरच खुरच कर उतार फेंकना चाहता हो
उसने अपने कपडे धोये, निचोड़ कर फिर पहन लिए
कुछ पैसे जो उसने अपनी जुराब में छुपाये हुए थे उनको संभाला
उसके बाद उसने स्टेशन पर ही भरपेट खाना खाया
देर रात थी तो वेटिंग रूम में ही सो गया
 (रज्जन हमेशा ये कहता था की जब भी आप किसी बुरी परिस्तिथी में हो,
भूखे ना रहो,
भूखा व्यक्ति कभी ठीक से सोच नहीं पाता
पेट की आग आदमी के दिमाग पर कब्जा कर लेती है
तो पहले पेट की आग को बुझाओ
दिमाग शांत होगा, तो खुदबखुद काम करने लगेगा )

सुबह वो सीधा पंहुचा,दिल्ली दरियागंज में सुमेर के रिश्तेदार जगन जी के यहाँ
जिनका दरियागंज में आयुर्वैदिक दवाइयों का थोक का काम था
रज्जन ने उनको कलकत्ता का हाल बताया
सुमेर और धर्मचंद जी की खबर लेने को कहा
शुचित्रा को कलकत्ता में और गांव में अपनी अम्माँ को अपनी खैर-खबर का पत्र लिखा
उन दोनों को पत्र -व्यवहार के लिए जगन जी की दुकान का पता भी दिया
और करीब 10 दिन बाद लौटती डाक से रज्जन के नाम २ पत्र आये थे
पहला भाई केशव का पत्र था -
" भैया अम्माँ रो रही हैं ,कह रही हैं --
"आप अब जिद छोड़ दो ,गांव वापिस चले आओ "
                 
दुसरा शुचित्रा का ,
उसने लिखा था-
"तुम्हारे जाते ही बाबा ने मेरी शादी अपनी जात में ही पक्की कर दी
  कल मेरी शादी है
  जब तक तुम्हे ये पत्र मिलेगा मेरी शादी हो चुकी होगी "
 "हो सके तो मुझे भूल जाना "

"रज्जन को लगा जैसे उसका जो कुछ बचा-कुचा भी था
 वो भी आज लुट गया"

पर गरीब आदमी के जीवन में इतनी सारी दुविधाएं एक साथ रहती है के
नियती उसको सोग मनाने को भी बस ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन ही देती है
पेट की आग उसे जल्द ही फिर से जीवन-संघर्ष में झोंक देती है

सो कुछ दिन बाद ही
रज्जन ने भी जगन जी की मदद से दरियागंज में ही एक छोटा सा ऑफिस किराए पे लिया
और वहीं से अपना "सोवियत नारी" पत्रिका का काम फिर से दिल्ली में शुरू किया
साथ-साथ वो जगन जी के आयुवैदिक मेडिसन की पंजाब और उत्तरप्रदेश में सेल्समेन टूरिंग भी करने लगा
पता नहीं ये रज्जन की अच्छी किस्मत थी या उसकी बिज़नेस की अच्छी समझ
यहाँ दिल्ली में भी वो अच्छा कामयाब होता चला जा रहा था
अपनी जरूरतों से बहुत ज्यादा अच्छा पैसा कमा रहा था वो
इतना अच्छा की
अब उसने दिल्ली के ग्रीन पार्क जैसे पॉश इलाके में घर किराये पे लिया
उसे स्विमिंग का शौक था तो दिल्ली के एक अच्छे क्लब की मेम्बरशिप भी ले ली
अपनी कमाई से कंही बहुत ज्यादा बेहतर और आधुनिक जीवनशैली चुनी थी उसने
सो जितना वो कमा रहा था
वो सारा खर्च कर रहा था

रज्जन अब 27 का हो रहा था
तो घरवाले शादी के लिए लगातार दवाब बना रहे थे
रज्जन एक गोरी और लम्बी लड़की से शादी करना चाहता था
वो सोचता था की वो खुद तो सांवला और नाटे कद का है
कम से कम होने वाले बच्चे तो गोरे-लम्बे हों :)
सो जैसे ही सावी का रिश्ता आया उसने सावी को देखते ही तुरंत हाँ कर दी
सावी एक गोरी,लम्बी दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी
शादी अच्छे से हो गयी
रज्जन क्युकी अक्सर बिज़नेस टूर पर रहता था
शादी के बाद सावी कुछ दिनों के लिए रज्जन के गांव जहांगीरपुर रहने आ गयी
सावी सोच रही थी की कुछ दिन की बात है फिर तो दिल्ली ही रहना है
इधर जाने शादी की मसरूफियत में या रज्जन की लापरवाही के चलते रज्जन के कुछ बंधे हुए बड़े ग्राहक छूट गए
उसका कमीशन बेस्ड काम था
फिक्स सैलरी या इनकम कोई थी नहीं
पर ऑफिस रेंट,स्टाफ सारे खर्चे फिक्स्ड थे
बचत तब तक उसने कभी की नहीं थी
जो थोड़ी बहुत बचत थी भी तो वो शादी में खर्च हो गयी थी
आखिरकार दरियागंज का ऑफिस बंद हो गया
दिल्ली में रहकर खर्चा चलना भारी पड़ा तो
एक दिन भारी मन से रज्जन ने खुद भी अपने गांव के लिए वापिसी की ट्रैन पकड़ ली
ये फिर वही "कालका मेल "थी
इस बार निराशा के समंदर में डूबी हुयी
"दिल्ली से खुजा जंक्शन" फिर रज्जन के गांव जहांगीरपुर

पर अबकी बार सारी गलती उसकी खुद की थी
जीवन में अचानक होने वाले बदलावों के लिए जो बचत-प्रावधान या जो तैयारी रखनी चाहिए
उसने अबतक कभी की नहीं थी
जितना कमाया उतना खर्च करने से तो एक दिन ऐसा ही होना था
रज्जन अब या तो अपनी पिछली पेमेंट्स उगाही करने
या नए ग्राहक ढूंढ़ने लगातार लम्बे-लम्बे टूर पे रहता
गांव आता तो गांव की दूकान पे बैठता
यहाँ गांव में सावी अलग ही दुखी थी
दिल्ली में पली एक पढ़ी-लिखी लड़की उत्तर प्रदेश के एक छोटे से पिछड़े हुए गांव में आके फंस गयी थी
यहाँ लंबा घूंघट था
बिजली नहीं थी और ना ही साफ़ पानी
हैंडपंप चला के पानी निकालना
उपलों के चूल्हे पे खाना बनाना,
राख से बर्तन मांजना,
गोबर से फर्श की लिपाई करना
ये सब तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था
इधर रज्जन भी एक बार फिर आसमान से धरती पे गिरा था
दिल्ली शहर में ग्रीन पार्क जैसे पॉश इलाके में रहने वाला
रोज़ शाम  SOCIALIZE करने ,स्विमिंग करने क्लब जाने वाला रज्जन अब
अक्सर उन्ही 2 जोड़ी कपड़ो में 15 -20 दिनों और कभी कभी तो लगातार कई-कई महीनों लम्बे टूर पे रहता था
अक्सर वो टूर से ही सावी को खत लिखता था की अभी वो आगे किसी और राज्य जा रहा है
कुछ और दिन बाद लौटेगा
पर शायद उसके इस बिज़नेस को कोई परमानेंट डैमेज हो चुका था
उसकी महीनों लम्बी टूरिंग पे की गयी जीतोड़ मेहनत भी व्यर्थ हो रही थी
कोई सकारातमक परिणाम नहीं आ रहे थे
और एक बार जब रज्जन एक लम्बे टूर फिर निराश वापिस गांव आया तो

सावी ने उसे बताया की वो
"माँ बनने वाली है "

ये खबर सुनकर रज्जन को लगा के जैसे
उसकी सारी थकान ,सारा दुःख समाप्त हो गया हो
उसे दुनिया की सारी दौलत मिल गयी हो
उसने सावी को गले से लगा लिया
पति-पत्नी दोनों की आँखों में खुशी के आंसू थे
उसी क्षण रज्जन ने फैसला किया के उसे अब कुछ नया करना होगा
ये पुराना बिज़नेस नहीं
कुछ और
कुछ नया

और ये मौक़ा उसे कुछ दिन बाद ही मिल गया
दिल्ली से रज्जन के बड़े जीजाजी ओमप्रकाश जी गांव आये
उन्होंने रज्जन को बताया की वो दिल्ली में त्रि-नगर में एक प्लास्टिक दाना बनाने की फैक्ट्री लगा रहे हैं
वो बोले- "हम 3 पार्टनर पहले ही है ,एक तुम भी आ जाओ अगर मन हो तो "
बिज़नेस प्लान सुनते ही रज्जन ने अनुमान लगा लिया था की ये एक फायदे वाला बिज़नेस है
रज्जन को अपने हिस्से के 6 हज़ार रूपये का इंतज़ाम करना था
मुश्किल था पर
उसने जहाँ कहीं से भी पैसे इकठे हो सकते थे किये
दिल में नया उत्साह था
अपने आनेवाले बच्चे के लिए बेहतर भविष्य के सपने थे
और इस बार वो खुद पहले से बेहतर था
बहुत बेहतर
दो बार डूबा था
उसने अपना सबक सीख लिया था
रज्जन ,ओमप्रकाश जी के साथ दिल्ली चल दिया
फिर वही उसके सपनों के ट्रैन "कालका मेल" थी,इस बार
खुर्जा जंक्शन से दिल्ली
कालका मेल ने  धीरे-धीरे रेंगते हुए खुर्जा जंक्शन स्टेशन छोड़ दिया
और बढ़ चली रज्जन के एक नए सपने के सफर पे
 "दिल्ली"
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दिल्ली में आकर रज्जन का क्या हुआ ?
क्या पूरे हुए उसके सपने?
प्रवासी,भाग-5 में ,कुछ दिन बाद :)

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