ये सन 1977 की बात है
रज्जन के घर में मुकेश का आना था
और रज्जन के काम को जैसे पंख लगना था
सौभाग्य और धन-धान्य अब रज्जन के पास खुदबखुद आ रहा था
उसके बनाये हुए सारे प्रोडक्ट्स चल रहे थे और
रज्जन को हर महीने अच्छा मुनाफ़ा आ रहा था
सब रज्जन को राय दे रहे थे कब तक किराए के 1 कमरे में रहोगे
अब तो अपना घर ले लो
सावी भी यही चाहती थी
पर रज्जन का मन तो कुछ और ही था
कुछ भी सामान्य करना तो उसने कभी सीखा ही कहाँ था
उसको याद थी अपने बालपन की वो कसम
वो वादा जो कभी उसने खुद से किया था
"मेरे लाला जमींदार थे, और मुझे उन्हें फिर से जमींदार बनाना है "
रज्जन गांव गया
भाई केशव को बोला - "कोई बिकाऊ बड़ी जमीन ढूंढो"
भाई केशव ने खूब समझाया
रज्जन के लाला तो सुनकर खूब गुस्सा हो गए ,बोले-
"3 -3 बच्चों के साथ किराये के 1 कमरे में रहता है
फैक्ट्री भी किराए की है
पहले दिल्ली में घर खरीद , फैक्ट्री खरीद
यहाँ खेती की जमीन लेकर क्या करेगा तू
कहीं का लाट साब है क्या तू "
रज्जन बोला -"आपको क्या , मेरा पैसा है , मैं चाहे आग लगाऊ "
सब निरुत्तर हो गए
आखिरकार 70 बीघा का एक बड़ा खेत मिला
(उस समय जहांगीरपुर के आस-पास के गांव में इतना बड़ा एक खेत किसी और के पास नहीं था )
नकद पैसे देकर खरीदा गया
जब लाला अपने नाम जमीन के कागज़ कराने कचहरी जा रहे थे तो
सब ने तो देखा के
लाला बहुत गुस्से में है,लगातार रज्जन को गाली दे रहे हैं
पर जो रज्जन ने देखा, वो शायद और किसी ने भी नहीं देखा
आज उसके लाला एक फुट और लम्बे लग रहे थे
वो आज पहले से और ज्यादा तेज चल रहे थे
लग रहा था जैसे आज जमीन उनके पैरों को छू ही नहीं पा रही
बरसों बाद उनका कुर्ता आज कलफ लगा हुआ था
चेहरे पे दिव्य आभा थी
रज्जन को आज अपने लाला ठीक वैसे ही लग रहे थे जैसे
उसने कभी पुराने लोगों से लाला के जमींदारी के किस्से सुनकर
अपने मन में उनकी छवि बनायी हुयी थी
वो छुपा रहे थे पर उनकी आँखों के कोर गीले थे
वो एक हाथ से कागज़ साइन कर रहे थे
दूसरे हाथ से उन्होंने पास बैठे रज्जन का हाथ कस के पकड़ा हुआ था
रज्जन ने सब के लिए पेड़े मंगवाए थे
सब पेड़े खाकर , बधाई देकर चले गए ,पर
रज्जन और रज्जन के लाला देर तक वहीँ कचहरी में एक पेड़ के नीचे चुपचाप बैठे रहे
वो दोनों आपस में कोई बात नहीं कर रहे थे
अचानक लाला झटके से उठे ,नकली गुस्से से बोले-
"ये तेरी जमीन है, जब बेचो चाहे ,अपने नाम करानो चाहे
बता दियो , मोपे कोई एहसान ना कियो है तूने "
रज्जन हँसते हुए उठा , बोला-
"हां हां मालूम है मोए , ये मेरी जमीन है "
"अब घर चले , भूख लग रही है "
रज्जन और रज्जन के लाला घर आ गए
अम्माँ चूल्हे पे रोटी सेंकते-सेंकते ,
नम आँखों से रज्जन को खाना खाते देख रही थी
उसे आज फिर वही छोटा सा रज्जन दिख रहा था ,
जो ऐसे ही खाना खाते-खाते अक्सर कहता था-
"अम्माँ , मेरे लाला जमींदार थे ना, बोल ना, थे ना
तू देखिओ ,एक दिन मैं उन्हें फिर से जमींदार बना दंगो "
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रज्जन के घर में मुकेश का आना था
और रज्जन के काम को जैसे पंख लगना था
सौभाग्य और धन-धान्य अब रज्जन के पास खुदबखुद आ रहा था
उसके बनाये हुए सारे प्रोडक्ट्स चल रहे थे और
रज्जन को हर महीने अच्छा मुनाफ़ा आ रहा था
सब रज्जन को राय दे रहे थे कब तक किराए के 1 कमरे में रहोगे
अब तो अपना घर ले लो
सावी भी यही चाहती थी
पर रज्जन का मन तो कुछ और ही था
कुछ भी सामान्य करना तो उसने कभी सीखा ही कहाँ था
उसको याद थी अपने बालपन की वो कसम
वो वादा जो कभी उसने खुद से किया था
"मेरे लाला जमींदार थे, और मुझे उन्हें फिर से जमींदार बनाना है "
रज्जन गांव गया
भाई केशव को बोला - "कोई बिकाऊ बड़ी जमीन ढूंढो"
भाई केशव ने खूब समझाया
रज्जन के लाला तो सुनकर खूब गुस्सा हो गए ,बोले-
"3 -3 बच्चों के साथ किराये के 1 कमरे में रहता है
फैक्ट्री भी किराए की है
पहले दिल्ली में घर खरीद , फैक्ट्री खरीद
यहाँ खेती की जमीन लेकर क्या करेगा तू
कहीं का लाट साब है क्या तू "
रज्जन बोला -"आपको क्या , मेरा पैसा है , मैं चाहे आग लगाऊ "
सब निरुत्तर हो गए
आखिरकार 70 बीघा का एक बड़ा खेत मिला
(उस समय जहांगीरपुर के आस-पास के गांव में इतना बड़ा एक खेत किसी और के पास नहीं था )
नकद पैसे देकर खरीदा गया
जब लाला अपने नाम जमीन के कागज़ कराने कचहरी जा रहे थे तो
सब ने तो देखा के
लाला बहुत गुस्से में है,लगातार रज्जन को गाली दे रहे हैं
पर जो रज्जन ने देखा, वो शायद और किसी ने भी नहीं देखा
आज उसके लाला एक फुट और लम्बे लग रहे थे
वो आज पहले से और ज्यादा तेज चल रहे थे
लग रहा था जैसे आज जमीन उनके पैरों को छू ही नहीं पा रही
बरसों बाद उनका कुर्ता आज कलफ लगा हुआ था
चेहरे पे दिव्य आभा थी
रज्जन को आज अपने लाला ठीक वैसे ही लग रहे थे जैसे
उसने कभी पुराने लोगों से लाला के जमींदारी के किस्से सुनकर
अपने मन में उनकी छवि बनायी हुयी थी
वो छुपा रहे थे पर उनकी आँखों के कोर गीले थे
वो एक हाथ से कागज़ साइन कर रहे थे
दूसरे हाथ से उन्होंने पास बैठे रज्जन का हाथ कस के पकड़ा हुआ था
रज्जन ने सब के लिए पेड़े मंगवाए थे
सब पेड़े खाकर , बधाई देकर चले गए ,पर
रज्जन और रज्जन के लाला देर तक वहीँ कचहरी में एक पेड़ के नीचे चुपचाप बैठे रहे
वो दोनों आपस में कोई बात नहीं कर रहे थे
अचानक लाला झटके से उठे ,नकली गुस्से से बोले-
"ये तेरी जमीन है, जब बेचो चाहे ,अपने नाम करानो चाहे
बता दियो , मोपे कोई एहसान ना कियो है तूने "
रज्जन हँसते हुए उठा , बोला-
"हां हां मालूम है मोए , ये मेरी जमीन है "
"अब घर चले , भूख लग रही है "
रज्जन और रज्जन के लाला घर आ गए
अम्माँ चूल्हे पे रोटी सेंकते-सेंकते ,
नम आँखों से रज्जन को खाना खाते देख रही थी
उसे आज फिर वही छोटा सा रज्जन दिख रहा था ,
जो ऐसे ही खाना खाते-खाते अक्सर कहता था-
"अम्माँ , मेरे लाला जमींदार थे ना, बोल ना, थे ना
तू देखिओ ,एक दिन मैं उन्हें फिर से जमींदार बना दंगो "
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