वो अचानक जाने कहाँ से ,
एक झटके से एकदम से सामने आकर खड़ी हो गयी थी
"नीना तुम ...
ये सचमुच में तुम ही हो "
लॉन्ग टाइम नो सी "
अरुण लगभग चीखते हुए बोला था
" हाँ मैं ही हूँ वही प्रेसीडेंसी कॉलेज के बड़ के पेड़ वाली चुड़ैल "
नीना ने उसी अपने चिरपरिचित पुराने अंदाज़ में खिलखिलाते हुए कहा था
और फिर अरुण और नीना जाने कितनी देर तक जोर-जोर से हँसते रहे थे
कभी किसी एक पूरे ज़माने पहले
नीना और अरुण एक ही कॉलेज में पढ़ते थे
अरुण उसी साल पटना से दिल्ली पढ़ने आया था
और नीना वही दिल्ली में पैदा हुयी थी और
अपने एसएच्ओ पापा को मिले पुलिस कॉलोनी के
एक बड़े सरकारी घर में रहती थी
अरुण को अच्छे याद है की वो उसका कॉलेज में पहला दिन था
बिहार बोर्ड से बारहवीं पास करके पटना से दिल्ली पढ़ने आया हुआ वो लड़का
गोरा ,मगर नाटे से कद का था
वो बीच से मांग निकाल के अपने बाल दोनों तरफ करके बनाता था
उसके बालों में इतना तेल होता था की
पन्ना पलटने के लिए स्कूल में दोस्तों ने उँगलियों पर थूक लगाना बंद कर दिया था
बस उसके बालों में हाथ लगाओ और चाहे जितने पन्ने पलटो :)
अपने कॉलेज के पहले दिन
वो अपने सबसे अच्छे कपडे पहनकर
अपने बालों को दोनों ओर ठीक करता हुआ अभी कॉलेज में गेट के अंदर घुसा ही था की
वही हुआ जिसका डर था
कुछ आवाज़े एक साथ आयी
"ऐ फ़्रेशी
हाँ अबे तू ही
सरसों के तेल की दूकान
इधर आ "
सीनियर्स के उसको अपने पास गार्डन में बुला लिया था
अरुण ने देखा वहां उसके जैसे और भी कई फ़्रेशी भीगी बिल्ली बने खड़े थे
और उनके बिलकुल सामने करीब 20 -30 सीनियर्स
वहीं घास पे आलथी-पालथी मार के बैठे थे
जब उसका नंबर आया तो
एक सीनियर बोला -
" ए फ़्रेशी वो पेड़ दिख रहा है "
वो दूर एक बड़ा सा बड़ का पेड़ था
" जी "
"उस पेड़ तक जाना है
गुलाब का फूल तोड़ के लाना है "
अरुण चकरा गया था
वो मिमयाती हुए बोला
"सर ..बड़ ..के ..पेड़.. पे.. गुलाब ..का... फूल "
" हाँ ", वो सीनियर जोर से चिल्लाया था
"अब भाग के जा "
अरुण बेचारा मरता क्या ना करता
वो भागा
और सीधा उस बड़े से
घने बड़ के पेड़ के नीचे ही आकर रुका
वो पेड़ इतना घना था की उसके नीचे बिलकुल घुप अन्धेरा था
वो बड़ा भयानक लग रहा था
ऐसा जैसे कोई काली चुड़ैल हो
जिसके लम्बे-लम्बे बाल जमीन तक लटक रहे हों
अरुण अभी बेवकूफों की तरह उस पेड़ को दायें-बायें ,
ऊपर-नीचे देख ही रहा था की
कोई भारी चीज़ अचानक से उस के ऊपर आकर गिरी
वो पीठ के बल गिरा था
और वो भारी चीज़ उसके सीने पे सवार थी
और तभी चारों और से शोर आना शुरू हो गया
"अरे काली चुड़ैल आ गयी रे "
"अरे काली चुड़ैल आ गयी रे "
अरुण ने डर के मारे अपनी दोनों आँखें कसकर बंद कर ली थी
और वो हाथ जोड़कर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का जाप कर रहा था
"भूत-पिचाश निकट नहीं आवै ,महावीर जब नाम सुनावै
जल तू जलाल तू आयी बाला को टाल तू "
"भूत-पिचाश निकट नहीं आवै ,महावीर जब नाम सुनावै
जल तू जलाल तू आयी बाला को टाल तू "
जाने कितनी देर वो ऐसे ही करता रहा
कुछ देर बाद उसने महसूस किया की वो भारी पथ्थर उसके सीने से हट गया है
सारी आवाज़े भी आनी बंद हो गयी हैं
अब बस कुछ लोगों के हंसने की आवाज़ें आ रही थी
उसने डरते-डरते धीरे से एक आँख खोल कर देखा तो
देखा
सामने एक लड़की खड़ी मुस्कुरा रही है
और उन दोनों को घेरे 20 -30 लड़के-लड़कियों का ग्रुप जोर-जोर से हँस रहा है
अब अरुण की समझ में आया की उसका तो बहुत बड़े वाला काटा गया है :)
वो भी खिसयाते हुए
अपने कपडे झाड़ता हुआ खड़ा हुआ
और नकली हँसी हंसने लगा
जैसे की कुछ हुआ ही ना हो
भारी पथ्थर
मतलब की उस सामने खड़ी लड़की ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा था
"हाय , आई ऍम नीना "
नीना चौधरी "
अरुण ने भी डरते डरते अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा
" जी... जी मैं अरुण ....अरुण झा "
उस लड़की ने बड़े प्यार से उससे हाथ मिलाया
और फिर थोड़ा सा पीछे हट के खड़ी हो गयी
और फिर सब लड़के-लड़कियाँ एक-एक करके आते गए
हाय ,हेलो करते गए
वो सब अपना-अपना नाम भी बता रहे थे
आई ऍम दिस , आई ऍम दैट ...ब्ला ब्ला ब्ला
कोई हाथ मिला रहा था
कोई गले मिल रहा था
कोई कंधे पे थपकी दे रहा था
कोई कोई अरुण को दोनों कन्धों से पकड़ के हिला भी रहा था
अरुण ने ना तो किसी को देखा
और ना ही उसे कुछ सुनाई दे रहा था
उसकी आँखे जैसे लॉक हो गयी थी
उन भूरी आँखों के समंदर में
जो उसके ठीक सामने खड़ी लगातार उसे ही देखें जा रही थी
और मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी
अरुण के कानों में एक ही आवाज़ बार-बार गूँज रही थी
""हाय , आई ऍम नीना "
नीना चौधरी "
-------------------------------------------------------------------------------------------------
दोस्तों ये था कहानी
"वो बड़ के पेड़ वाली चुड़ैल"
का पहला भाग
अगर आप चाहेंगें तो मैं इस कहानी के दूसरे ,तीसरे,चौथे .... :)
जहाँ तक आप चाहेंगे मैं लिखूंगा :)
एक झटके से एकदम से सामने आकर खड़ी हो गयी थी
"नीना तुम ...
ये सचमुच में तुम ही हो "
लॉन्ग टाइम नो सी "
अरुण लगभग चीखते हुए बोला था
" हाँ मैं ही हूँ वही प्रेसीडेंसी कॉलेज के बड़ के पेड़ वाली चुड़ैल "
नीना ने उसी अपने चिरपरिचित पुराने अंदाज़ में खिलखिलाते हुए कहा था
और फिर अरुण और नीना जाने कितनी देर तक जोर-जोर से हँसते रहे थे
कभी किसी एक पूरे ज़माने पहले
नीना और अरुण एक ही कॉलेज में पढ़ते थे
अरुण उसी साल पटना से दिल्ली पढ़ने आया था
और नीना वही दिल्ली में पैदा हुयी थी और
अपने एसएच्ओ पापा को मिले पुलिस कॉलोनी के
एक बड़े सरकारी घर में रहती थी
अरुण को अच्छे याद है की वो उसका कॉलेज में पहला दिन था
बिहार बोर्ड से बारहवीं पास करके पटना से दिल्ली पढ़ने आया हुआ वो लड़का
गोरा ,मगर नाटे से कद का था
वो बीच से मांग निकाल के अपने बाल दोनों तरफ करके बनाता था
उसके बालों में इतना तेल होता था की
पन्ना पलटने के लिए स्कूल में दोस्तों ने उँगलियों पर थूक लगाना बंद कर दिया था
बस उसके बालों में हाथ लगाओ और चाहे जितने पन्ने पलटो :)
अपने कॉलेज के पहले दिन
वो अपने सबसे अच्छे कपडे पहनकर
अपने बालों को दोनों ओर ठीक करता हुआ अभी कॉलेज में गेट के अंदर घुसा ही था की
वही हुआ जिसका डर था
कुछ आवाज़े एक साथ आयी
"ऐ फ़्रेशी
हाँ अबे तू ही
सरसों के तेल की दूकान
इधर आ "
सीनियर्स के उसको अपने पास गार्डन में बुला लिया था
अरुण ने देखा वहां उसके जैसे और भी कई फ़्रेशी भीगी बिल्ली बने खड़े थे
और उनके बिलकुल सामने करीब 20 -30 सीनियर्स
वहीं घास पे आलथी-पालथी मार के बैठे थे
जब उसका नंबर आया तो
एक सीनियर बोला -
" ए फ़्रेशी वो पेड़ दिख रहा है "
वो दूर एक बड़ा सा बड़ का पेड़ था
" जी "
"उस पेड़ तक जाना है
गुलाब का फूल तोड़ के लाना है "
अरुण चकरा गया था
वो मिमयाती हुए बोला
"सर ..बड़ ..के ..पेड़.. पे.. गुलाब ..का... फूल "
" हाँ ", वो सीनियर जोर से चिल्लाया था
"अब भाग के जा "
अरुण बेचारा मरता क्या ना करता
वो भागा
और सीधा उस बड़े से
घने बड़ के पेड़ के नीचे ही आकर रुका
वो पेड़ इतना घना था की उसके नीचे बिलकुल घुप अन्धेरा था
वो बड़ा भयानक लग रहा था
ऐसा जैसे कोई काली चुड़ैल हो
जिसके लम्बे-लम्बे बाल जमीन तक लटक रहे हों
अरुण अभी बेवकूफों की तरह उस पेड़ को दायें-बायें ,
ऊपर-नीचे देख ही रहा था की
कोई भारी चीज़ अचानक से उस के ऊपर आकर गिरी
वो पीठ के बल गिरा था
और वो भारी चीज़ उसके सीने पे सवार थी
और तभी चारों और से शोर आना शुरू हो गया
"अरे काली चुड़ैल आ गयी रे "
"अरे काली चुड़ैल आ गयी रे "
अरुण ने डर के मारे अपनी दोनों आँखें कसकर बंद कर ली थी
और वो हाथ जोड़कर जोर-जोर से हनुमान चालीसा का जाप कर रहा था
"भूत-पिचाश निकट नहीं आवै ,महावीर जब नाम सुनावै
जल तू जलाल तू आयी बाला को टाल तू "
"भूत-पिचाश निकट नहीं आवै ,महावीर जब नाम सुनावै
जल तू जलाल तू आयी बाला को टाल तू "
जाने कितनी देर वो ऐसे ही करता रहा
कुछ देर बाद उसने महसूस किया की वो भारी पथ्थर उसके सीने से हट गया है
सारी आवाज़े भी आनी बंद हो गयी हैं
अब बस कुछ लोगों के हंसने की आवाज़ें आ रही थी
उसने डरते-डरते धीरे से एक आँख खोल कर देखा तो
देखा
सामने एक लड़की खड़ी मुस्कुरा रही है
और उन दोनों को घेरे 20 -30 लड़के-लड़कियों का ग्रुप जोर-जोर से हँस रहा है
अब अरुण की समझ में आया की उसका तो बहुत बड़े वाला काटा गया है :)
वो भी खिसयाते हुए
अपने कपडे झाड़ता हुआ खड़ा हुआ
और नकली हँसी हंसने लगा
जैसे की कुछ हुआ ही ना हो
भारी पथ्थर
मतलब की उस सामने खड़ी लड़की ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा था
"हाय , आई ऍम नीना "
नीना चौधरी "
अरुण ने भी डरते डरते अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा
" जी... जी मैं अरुण ....अरुण झा "
उस लड़की ने बड़े प्यार से उससे हाथ मिलाया
और फिर थोड़ा सा पीछे हट के खड़ी हो गयी
और फिर सब लड़के-लड़कियाँ एक-एक करके आते गए
हाय ,हेलो करते गए
वो सब अपना-अपना नाम भी बता रहे थे
आई ऍम दिस , आई ऍम दैट ...ब्ला ब्ला ब्ला
कोई हाथ मिला रहा था
कोई गले मिल रहा था
कोई कंधे पे थपकी दे रहा था
कोई कोई अरुण को दोनों कन्धों से पकड़ के हिला भी रहा था
अरुण ने ना तो किसी को देखा
और ना ही उसे कुछ सुनाई दे रहा था
उसकी आँखे जैसे लॉक हो गयी थी
उन भूरी आँखों के समंदर में
जो उसके ठीक सामने खड़ी लगातार उसे ही देखें जा रही थी
और मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी
अरुण के कानों में एक ही आवाज़ बार-बार गूँज रही थी
""हाय , आई ऍम नीना "
नीना चौधरी "
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दोस्तों ये था कहानी
"वो बड़ के पेड़ वाली चुड़ैल"
का पहला भाग
अगर आप चाहेंगें तो मैं इस कहानी के दूसरे ,तीसरे,चौथे .... :)
जहाँ तक आप चाहेंगे मैं लिखूंगा :)
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