बात 1976 की है
पवन एक बहुत ही प्यारा
ढाई साल का
नन्हा-मुन्ना
सांवला सलोना सा
खुशदिल बच्चा था
वैसे तो उसका घर दिल्ली में था
पर आज वो माँ सावी और पापा रज्जन के साथ उनके गांव आया हुआ था
उसने देखा ,आज गांव वाले घर में बहुत चहल-पहल है
सब बहुत खुश लग रहे थे
एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं
गले मिल रहें हैं
आँगन के एक ओर हलवाई ,
पवन के मनपसंद गुलाब-जामुन बना रहे थे
पंडित जी भी आये हुए थे
वो आँगन के बीच में बैठे कुछ सामान संभाल रहे थे
फूलमाला, लकड़ियाँ ,और भी पता नहीं क्या-क्या सामान था
फिर सब लोग भी पंडित जी के पास आ गए
पापा, मम्मी, अम्माँ ,बाबा चाचा ,चाची और भी बहुत सारे लोग
वो सब लोग आकर पंडित जी के आसपास बैठ गए
पवन ने देखा, चाचा-चाची पंडित जी के बिलकुल सामने बैठे है
और चाची की गोदी में रखे तौलिये में एक छोटा सा बच्चा है
पवन ,चाची से बोला-
" चाची ये कौन है "
( पवन ने उंगली से चाची की गोदी की ओर इशारा करते हुए पूछा )
ये सुनकर चाची हँसी और बोली -
"पवन ये तेरा छोटा भाई है "
अब तो पवन चाची के बिलकुल पास आकर बैठ गया
पवन ने जैसे ही उस छोटे से बच्चे की हथेली को अपनी उंगली से छुआ
उस बच्चे ने पवन की उंगली अपनी मुठ्ठी में कस के पकड़ ली
पवन बहुत खुश हो गया
पवन ने देखा वो एक छोटा सा सुन्दर हाथ था
जिसपर एक काला धागा बंधा हुआ था
अभी पवन इसी धुन में खोया हुआ था की
पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू कर दिया
हवनकुंड में एक-एक कर सारी लकड़ियाँ और सारी सामग्री डाली
पवित्र अग्नि प्रजव्लित हो रही थी
उसके बाद पंडित जी ऐलान किया-
"जजमान सिंह राशि है , बच्चे नाम "म " से होगा "
पवन के चाचा केशव तुरंत बोल पड़े -
"फिर तो मनोज कुमार रख देते है "
साथ बैठे सभी लोग हँसे
केशव चाचा के दोस्त सुधीर बोले-
"केशो मुझे पता है तू मनोज कुमार के पीछे कितना पागल है
भाभी आपको पता है
ये "उपकार" और "शोर" फिलम कितनी बार दिल्ली देख आया है ? "
केशव चाचा हॅंस कर बोले -
"अबे नाम रखने से
अगर मेरा बेटा मनोज कुमार की तरह बड़ा फ़िल्मी सितारा बन जाए तो
अच्छा ही है ना "
( 60s और 70s में मनोज कुमार टॉप के हीरो थे और केशव चाचा के फेवरेट :)
पूर्व और पश्चिम, उपकार, रोटी कपड़ा और मकान , शोर जैसे अनगिनत बेहतरीन फ़िल्में उन्होंने की हैं
उनकी इन्हीं देशभक्ति की फिल्मों की वजह से
उन्हें आज भी "भारत कुमार" कहते हैं :) )
पवन ऊपर मुंडी करके इन सब की बातें सुनने-समझने की कोशिश कर रहा था
पवन साथ बैठी माँ (सावी) से बोला -
"माँ ये मनोज कुमार कौन है "
सावी- "बेटा मनोज कुमार एक बहुत बड़ा फ़िल्मी हीरो है "
पवन- "और पवन "
सावी- "पवन तुम्हारा नाम है बेटा "
पवन-"नहीं , मैं पूछ रहा हूँ और पवन कौन है "
( सावी अब तक पवन की इन बे-सरपैर की बातों सी खीज चुकी थी
तो पीछा छुड़ाने लिए बोल दिया )
" नहीं पवन नाम का कोई कुछ नहीं है ...बस खुश ..अब बस तू चुप हो जा "
उस सारी रात नन्हा पवन सोया नहीं
उसने सोचा उसका नाम पवन है
और पवन नाम का तो कोई कुछ नहीं है
उसे लगा ये छोटा सा बच्चा तो मनोज कुमार नाम रखके एक दिन बड़ा आदमी बन जाएगा
और वो ऐसे ही रह जाएगा
और सुबह उठते ही जो भी उसे मिला
उससे पवन ने बस इतना ही कहा -
"आज से मेरा नाम भी मनोज कुमार है
पवन नाम से मैं बोलूँगा ही नहीं "
सब खूब हँसे :)
खूब समझाया
पर पवन टस से मस ना हुआ
अब तो कोई भी उससे उसका नाम पूछता तो वो मनोज कुमार ही बताता :)
स्कूल के दाखिले के समय टीचर के पूछने पर उसने अपना नाम मनोज कुमार ही बताया :)
तो स्कूल में भी उसका नाम मनोज ही लिखा गया
आखिरकार रज्जन और सावी ने भी समझौता कर लिया
उसे मनोज ही कहना शुरू कर दिया
उधर गांव में केशव चाचा के बच्चे को भी उसका नाम मनोज ही बताया जा रहा था
बीच में उसका नाम कुछ और रखने की कोशिश भी हुयी
पर अन्तः उसका नाम भी मनोज ही पक गया
तो अब एक ही परिवार में "दो-दो मनोज" हो गए थे :)
फ़र्क़ बस इतना ही हुआ की
जब-जब बातचीत में दोनों की बात एक साथ होती तो
पहचान के लिए रज्जन के बेटे को "दिल्ली वाला मनोज "
और केशव के बेटे को "गांव वाला मनोज"
कहा जाता है :)
आज 44 साल बाद भी ऐसा ही चल रहा है :)
तो सब इस बात पे खूब हँसते है
सब दिल्ली वाले मनोज से पूछते भी हैं की उसने ये अपना नाम पवन से मनोज क्यों किया
पर दिल्ली वाला मनोज किसी को क्या बताये की
उस वक़्त उसके मन में छोटे भाई के लिए कैसी इर्षा जाग गयी थी
उसके बालक मन ने सोचा की
जो भी सबसे बेहतर चीज़ हो
वो बस मुझे ही मिले,
किसी और को नहीं
मेरे अपने छोटे भाई को भी नहीं :(
#मन7
#बचपन #bachpan manojgupta0707.blogspot.com
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पवन एक बहुत ही प्यारा
ढाई साल का
नन्हा-मुन्ना
सांवला सलोना सा
खुशदिल बच्चा था
वैसे तो उसका घर दिल्ली में था
पर आज वो माँ सावी और पापा रज्जन के साथ उनके गांव आया हुआ था
उसने देखा ,आज गांव वाले घर में बहुत चहल-पहल है
सब बहुत खुश लग रहे थे
एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं
गले मिल रहें हैं
आँगन के एक ओर हलवाई ,
पवन के मनपसंद गुलाब-जामुन बना रहे थे
पंडित जी भी आये हुए थे
वो आँगन के बीच में बैठे कुछ सामान संभाल रहे थे
फूलमाला, लकड़ियाँ ,और भी पता नहीं क्या-क्या सामान था
फिर सब लोग भी पंडित जी के पास आ गए
पापा, मम्मी, अम्माँ ,बाबा चाचा ,चाची और भी बहुत सारे लोग
वो सब लोग आकर पंडित जी के आसपास बैठ गए
पवन ने देखा, चाचा-चाची पंडित जी के बिलकुल सामने बैठे है
और चाची की गोदी में रखे तौलिये में एक छोटा सा बच्चा है
पवन ,चाची से बोला-
" चाची ये कौन है "
( पवन ने उंगली से चाची की गोदी की ओर इशारा करते हुए पूछा )
ये सुनकर चाची हँसी और बोली -
"पवन ये तेरा छोटा भाई है "
अब तो पवन चाची के बिलकुल पास आकर बैठ गया
पवन ने जैसे ही उस छोटे से बच्चे की हथेली को अपनी उंगली से छुआ
उस बच्चे ने पवन की उंगली अपनी मुठ्ठी में कस के पकड़ ली
पवन बहुत खुश हो गया
पवन ने देखा वो एक छोटा सा सुन्दर हाथ था
जिसपर एक काला धागा बंधा हुआ था
अभी पवन इसी धुन में खोया हुआ था की
पंडित जी ने मंत्रोचारण शुरू कर दिया
हवनकुंड में एक-एक कर सारी लकड़ियाँ और सारी सामग्री डाली
पवित्र अग्नि प्रजव्लित हो रही थी
उसके बाद पंडित जी ऐलान किया-
"जजमान सिंह राशि है , बच्चे नाम "म " से होगा "
पवन के चाचा केशव तुरंत बोल पड़े -
"फिर तो मनोज कुमार रख देते है "
साथ बैठे सभी लोग हँसे
केशव चाचा के दोस्त सुधीर बोले-
"केशो मुझे पता है तू मनोज कुमार के पीछे कितना पागल है
भाभी आपको पता है
ये "उपकार" और "शोर" फिलम कितनी बार दिल्ली देख आया है ? "
केशव चाचा हॅंस कर बोले -
"अबे नाम रखने से
अगर मेरा बेटा मनोज कुमार की तरह बड़ा फ़िल्मी सितारा बन जाए तो
अच्छा ही है ना "
( 60s और 70s में मनोज कुमार टॉप के हीरो थे और केशव चाचा के फेवरेट :)
पूर्व और पश्चिम, उपकार, रोटी कपड़ा और मकान , शोर जैसे अनगिनत बेहतरीन फ़िल्में उन्होंने की हैं
उनकी इन्हीं देशभक्ति की फिल्मों की वजह से
उन्हें आज भी "भारत कुमार" कहते हैं :) )
पवन ऊपर मुंडी करके इन सब की बातें सुनने-समझने की कोशिश कर रहा था
पवन साथ बैठी माँ (सावी) से बोला -
"माँ ये मनोज कुमार कौन है "
सावी- "बेटा मनोज कुमार एक बहुत बड़ा फ़िल्मी हीरो है "
पवन- "और पवन "
सावी- "पवन तुम्हारा नाम है बेटा "
पवन-"नहीं , मैं पूछ रहा हूँ और पवन कौन है "
( सावी अब तक पवन की इन बे-सरपैर की बातों सी खीज चुकी थी
तो पीछा छुड़ाने लिए बोल दिया )
" नहीं पवन नाम का कोई कुछ नहीं है ...बस खुश ..अब बस तू चुप हो जा "
उस सारी रात नन्हा पवन सोया नहीं
उसने सोचा उसका नाम पवन है
और पवन नाम का तो कोई कुछ नहीं है
उसे लगा ये छोटा सा बच्चा तो मनोज कुमार नाम रखके एक दिन बड़ा आदमी बन जाएगा
और वो ऐसे ही रह जाएगा
और सुबह उठते ही जो भी उसे मिला
उससे पवन ने बस इतना ही कहा -
"आज से मेरा नाम भी मनोज कुमार है
पवन नाम से मैं बोलूँगा ही नहीं "
सब खूब हँसे :)
खूब समझाया
पर पवन टस से मस ना हुआ
अब तो कोई भी उससे उसका नाम पूछता तो वो मनोज कुमार ही बताता :)
स्कूल के दाखिले के समय टीचर के पूछने पर उसने अपना नाम मनोज कुमार ही बताया :)
तो स्कूल में भी उसका नाम मनोज ही लिखा गया
आखिरकार रज्जन और सावी ने भी समझौता कर लिया
उसे मनोज ही कहना शुरू कर दिया
उधर गांव में केशव चाचा के बच्चे को भी उसका नाम मनोज ही बताया जा रहा था
बीच में उसका नाम कुछ और रखने की कोशिश भी हुयी
पर अन्तः उसका नाम भी मनोज ही पक गया
तो अब एक ही परिवार में "दो-दो मनोज" हो गए थे :)
फ़र्क़ बस इतना ही हुआ की
जब-जब बातचीत में दोनों की बात एक साथ होती तो
पहचान के लिए रज्जन के बेटे को "दिल्ली वाला मनोज "
और केशव के बेटे को "गांव वाला मनोज"
कहा जाता है :)
आज 44 साल बाद भी ऐसा ही चल रहा है :)
तो सब इस बात पे खूब हँसते है
सब दिल्ली वाले मनोज से पूछते भी हैं की उसने ये अपना नाम पवन से मनोज क्यों किया
पर दिल्ली वाला मनोज किसी को क्या बताये की
उस वक़्त उसके मन में छोटे भाई के लिए कैसी इर्षा जाग गयी थी
उसके बालक मन ने सोचा की
जो भी सबसे बेहतर चीज़ हो
वो बस मुझे ही मिले,
किसी और को नहीं
मेरे अपने छोटे भाई को भी नहीं :(
#मन7
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