Sunday, May 24, 2020

प्रवासी, भाग-8

1977 से 1987 तक के दस साल
रज्जन के जीवन या कहें रज्जन के बिज़नेस जीवन के स्वर्णिम साल थे
उसने जो भी किया ,बढ़िया हुआ
जहा पैसा लगाया, वही पैसा बनाया
उसने अपने गांव में और जमीन खरीदी
और अब उसने दिल्ली में अपना घर भी खरीद लिया
ये रामनगर,त्रिनगर में एक अच्छा ,बड़ा ,खुला ,हवादार 3 कमरों वाला घर था
ग्राउंड फ्लोर पे पूरा एक हॉल था
तीनो कमरे फर्स्ट फ्लोर पे और बीच में आँगन
और सेकंड फ्लोर पे पूरी छत
सावी ने पिछले पांच सालों में पांच बार किराये के अलग-अलग ,एक कमरे के घर बदले थे
सावी को अब जाकर लगा के उसके जीवन में सुख के दिन आ गए
इतने साल किराये पे रहते हुए
मकान मालिकों की टोका-टोकी बर्दाश्त करते-करते अब
वो अपने खुद के घर की मालकिन बन गयी थी
पास -पड़ोस बहुत अच्छा था
जल्द ही सबसे जान-पहचान भी हो गयी
तीनों बच्चे पवन,ममता,मुकेश भी अब क्रमशः 5 ,3  और 1 साल के हो गए थे
( वैसे बेटे पवन ने ढाई वर्ष की उम्र में खुद ही अपना नाम बदल कर पवन से मनोज कर लिया था , :)
अब ये पवन ने अपना नाम खुद ही कैसे और क्यों बदला ये एक अलग कहानी "दो-दो मनोज" में फिर कभी )
अब पवन स्कूल जाने लगा था
रज्जन ने एक सेकंड हैंड ब्राउन अम्बस्सडोर कार भी खरीद ली थी
ड्राइवर भी रख लिया था
उसका स्विमिंग का शौक भी फिर से लौट आया था
अब उसने दिल्ली के नामी फाइव स्टार होटल्स में स्विमिंग करना शुरू किया
रिश्तेदारों के बच्चे उसके घर रहने आते ,तो वो अपने बच्चो के साथ उनको भी स्विमिंग के लिए लेकर जाता
बच्चों को स्विमिंग सिखाना और उन्हें घुमाना ,उनके साथ हंसी-मज़ाक करना
उसे अच्छा लगता था

रज्जन दिन-रात पैसा कमाने, समाज सेवा करने ,
राजनैतिक लोगों से मेल-जोल बढ़ाने में व्यस्त रहने लगा
जो कोई भी जरूरतमंद रिश्तेदार या जानकार रज्जन के संपर्क में आया
रज्जन ने दिल खोल के सबकी सहायता की
उसने परिवार की कई लड़कियों की शादी रज्जन और सावी ने अपने घर से कराई
करीब 8 -10 लोग तो ऐसे भी रहे जो रज्जन की फैक्ट्री "बंगाल फुटवियर" में काम करने आये
उन्होंने काम सीखा और फिर रज्जन ने पैसे देकर ,
उन्हें खुद की जूता फैक्ट्री लगाने में सहायता की
(आज वो सब फुटवियर इंडस्ट्री में रसूखदार फैक्ट्री वाले हैं और समय समय पर
  रज्जन के उपकार को याद करके आज भी सम्मान देते हैं )

इस काल में एक वक़्त ऐसा भी आया जब त्रि-नगर में "अग्रवाल समाज" बन रहा था
रज्जन और सावी दोनों इसके फाउंडर मेंबर बने
अग्रवाल समाज त्रि-नगर ने धर्मशाला ,डिस्पेंसरी ,स्कूल जैसी कई संस्थाए त्रिनगर में स्थापित की ,
जो आज तक भी अच्छे से काम कर रही हैं

तभी एक अन्य बड़ी संस्था "पीवीसी कंपाउंड एंड मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन " के चुनाव थे
ये संस्था पुरे भारत लेवल की संस्था थी
चुकी उस वक़्त लगभग सारी बड़ी जूता फैक्ट्री मायापुरी में
और छोटी जूता फैक्टरियां त्रिनगर में हुआ करती थी
तो इस संस्था पे मायापुरी के बड़े फैक्ट्री वालों का ही होल्ड रहता था
त्रिनगर से कोई कभी चुनाव में उतरता ही नहीं था
रज्जन ने इस परिपाटी को तोड़ा
वो ना केवल चुनाव लड़ा, बल्कि प्रेजिडेंट पद जीता
और इतनी बड़ी संस्था को 2 साल लीड किया

कुल मिलाकर रज्जन के जीवन में सब एकदम बेहतरीन चल रहा था
पर 1987 का साल आते-आते रज्जन का मन काम से ,
दिल्ली के जीवन से ऊबने लगा था
उसको लगता था की जितना पैसा उसने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था
उससे कहीं ज्यादा पैसा वो कमा चुका था
अब वो दिल्ली की पोलुशन भरी लाइफ से
वापस अपने गांव जहांगीरपुर लौट सकता था  ,
अब रज्जन गांव में रहकर भी एक अच्छा और सुकून भरा जीवन जी सकता था

( ये एक टिपिकल प्रवासी-मनस्तिथि होती है , 
जो कोई प्रवासी अपना गांव छोड़ कर शहर या विदेश जाता है ,
तब हमेशा उसके दिमाग में एक संख्या या एक मील का पथ्थर होता है के 
यहाँ तक पहुंचकर मैं अपने गांव या देश वापिस लौट जाऊंगा )

"दुसरी तरफ शहर अपना पैसा कभी बाहर ले जाने नहीं देते ,
शहर कहता है - मेरा पैसा मेरे अंदर ही रहेगा ,
यहाँ जो मौज-मज़ा करना है ,घर-बार बनाना है बना लो पर 
मेरा पैसा शहर में ही रहेगा,कभी गांव नहीं जा सकता  "

( "आप देख ही सकते ही आज करोड़ों प्रवासी मज़दूर अपने गांव वापस जा रहे है,पर सब 
     खाली हाथ, खाली पेट " )

(और इसी वजह से आज तक भी शायद ही कोई NRI कभी लौट कर अपने देश आ सका हो , सबके कारण अलग-अलग हो सकते है ,पर लौट कर ना आ पाना , एक हक़ीक़त है )

इस समय सन 1987 में रज्जन का काम बेहतरीन चल रहा था
ऑटो पायलट मोड पे था
मतलब वो खुद काम को ना भी देखे तो भी
काम करने वाले लोग भी काम को चलता रख सकते थे
सावी ने समझाया - सब लोगों ने समझाया-
"लोग तो काम में नुक्सान होने पे काम बंद करते है
पर आप तो चले-चलाये काम को बंद करने का सोच रहे हो "
पर रज्जन की वही पुरानी अचानक ,तुरंत निर्णय लेने की आदत
और उस समय की त्रिनगर की सबसे बड़ी फैक्टरियों में शुमार एक फैक्ट्री ,
"बंगाल फुटवियर" 14 साल कामयाबी से चलने के बाद 1987 में अचानक
 एक दिन ,रज्जन ने खुद ही बंद कर दी

क्युकी ,
एक प्रवासी को लौट कर अपने गांव वापिस जाना था।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------



No comments:

Post a Comment