बात सन 1996 की है
तब दीपू एक सात साल का
छोटा सा,प्यारा सा,सांवला सा :) बच्चा था
दीपू की ख़ास बात थी उसके बाल
वो सामने से ऐसे थे
जैसे मोर की कलगी होती है ,
या फिर दूल्हे के सेहरे पे लगा ब्रोच होता है :)
वैसे तो दीपू हमेशा ही खुशबाश रहता था
पर आज वो कुछ ज्यादा ही खुश था क्युकी
आज उसके बड़े भैया मनु की शादी थी
घर में काफी भीड़-भाड़ थी ,दूर-दूर से रिश्तेदार आये हुए थे
हर तरफ गहमा-गहमी थी
तभी डोर बेल बजी
दीपू भाग के झज्जे में गया ,उसने पहली मंजिल से ही झाँक के देखा
घोड़ी आ गयी थी
( भारत में हिन्दू लोगों में शादी में दूल्हा घोड़ी पे बैठ के दुल्हन ब्याहने जाता है :) )
उसने अंदर आकर अपने पापा मुरली और ताऊ राजेंद्र जी को उत्साह से बताया-
"घोड़ी आ गयी,
घोड़ी आ गयी "
ये सुनकर मुरली और राजेंद्र जी भी बहुत खुश हो गए
और जल्दी से नीचे गए
दीपू फिर से भाग के छज्जे पे आ गया
और नीचे घोड़ी को निहारने लगा
वो एक बहुत ही सुन्दर ,एक दम सफ़ेद ,ऊंचे कद की , तंदुरुस्त घोड़ी थी
उसने ऊपर से सुना ,ताऊ राजेंद्र जी ,हँसते हुए उसके पापा मुरली से कह रहे थे-
"मुरली तू अपनी शादी में घोड़ी पे नहीं बैठ पाया था ना " :)
मुरली- "भाईसाहब आपको नहीं पता क्या ? :)
आपने ही तो मेरी शादी इतनी जल्दबाज़ी में करा दी थी ,
हम तो लड़की देखने गए थे ,
पसंद आ गयी तो आपने मुझे घेर के उसी दिन २ घंटे में वहीँ मेरी शादी करा दी थी"
"मेरी तो घोड़ी चढ़ने की तमन्ना दिल ही दिल में रह गयी " :)
दीपू के पापा मुरली हँसते हुए बोले थे
राजेंद्र ताऊ जी-"कोई बात नहीं मुरली तेरी ये तमन्ना आज पूरी किये देते हैं "
"इस साले घोड़ी वाले को थोड़ी देर के काम के लिए इतने पैसे दिए हैं
अब ये आ भी जल्दी गया है तो चल तुझे घोड़ी बैठने का एक्सपीरियंस कराते हैं"
मुरली जोर-जोर से हंसने लगा , बोला -
"भाईसाहब मज़ाक कर रहे क्या
राजेंद्र जी - "अरे नहीं मैं मज़ाक क्यों करूंगा "
मुरली- "अरे भाईसाहब कॉलोनी में लोग क्या सोचेंगे ? "
राजेंद्र जी - "अबे क्या सोचेंगे ,हमने क्या किसी साले की भैस खोली है "
"पूरे पैसे दिए हैं , आजा बैठ जा "
मुरली हँसते हुए बोला - " नहीं भाईसाहब मैं तो नहीं चढूँगा "
राजेंद्र जी - "चल मैं चढ़ता हूँ ,बाद में तू चढ़ जाइयो "
राजेंद्र जी घोड़ी वाले से बोला - "चल भाई पहले हम ट्राई करेंगे "
घोड़ी वाला बेचारा कभी राजेंद्र जी का मुँह देखे कभी मुरली का :)
मरता क्या ना करता ,उसने देखा की
ये दोनों दूल्हे तो गुट्टे मतलब नाटे हैं :)
मेरी घोड़ी इतनी ऊंची है,ये चढ़ेंगे कैसे
तो वो बोला- "बाउ जी आप इस मुंडेर पे खड़े हो जाओ ,
मैं घोड़ी यहाँ लाता हूँ "
"यहाँ से आप चढ़ जाओगे"
(उसने घर के बाहर बने ऊँचे चबूतरे की और इशारा किया)
राजेंद्र जी उस चबूतरे पे चढ़ गए
घोड़ी वाला घोड़ी पास ले आया और पहले राजेंद्र जी को घोड़ी पे बैठा दिया
घर के बिलकुल सामने बड़ा सा पार्क था जिसके चारों और करीब 60 कोठियां बनी हुयी थी
अब घोड़ी वाले ने राजेंद्र जी को घोड़ी पे बिठाकर पार्क का एक पूरा चक्कर लगवाया
चक्कर पूरा करके आते हुए रज्जन हँसते हुए मुरली से बोला -
"देख मुरली मैं तो दूसरी बार घोड़ी पे बैठ लिया ,
तू कब बैठेगा ,आजा "
"अब तू आजा "
राजेंद्र जी को घोड़ी पे बैठ चक्कर लगाते देख मुरली की भी झिझक खुल गयी थी
राजेंद्र जी के उतरते ही अब वो भी उस चबूतरे पे चढ़ा
और घोड़ी वाले ने अब मुरली को घोड़ी पे बिठा दिया
मुरली ने बड़ी शान से पूरे पार्क के २ चक्कर लगाए
उसे तो ऐसा ही लग रहा था क आज उसी की शादी है
और ये उसकी घुड़चढ़ी हो रही है
उसके दिल का एक अरमान जो कभी अधूरा रह गया था
आज पूरा हो गया था :)
ऊपर पहली मंज़िल के झज्जे पे खड़ा दीपू
जोर-जोर से हंस रहा था
उसने देखा था की पड़ोसी भी
जो अपने-अपने झज्जो पे या रोड पे खड़े थे
उन दोनों भाइयो राजेंद्र और मुरली को देख कर हंस रहे थे
कुछ बुरा सा मुँह भी बना रहे थे
पर ये दोनों भाई राजेंद्र और मुरली तो जैसे इस सब से बिलकुल ही अनजान थे :)
वो दोनों भाई तो बस अपनी ही धुन में मस्त थे
वो दोनों जोर- ज़ोर से खुद अपने ऊपर ही हंस रहे थे
एक बचपना था उन दोनों में :)
दीपू को बार-बार ताऊ जी रज्जन की बात कानों में सुनायी दे रही थी-
"अबे लोग क्या सोचेंगे ,
इससे हमें क्या ?
हमने क्या किसी साले की भैस खोली है "
आज 24 साल बाद भी जब-जब मनु की शादी की चर्चा होती है तो
सब इस घटना को याद करके इतना हँसते है :)
सच तो ये है की हमें अपने अंदर के बचपन को कभी मरने नहीं देना चाहिए :)
जिस दिन ये बचपन मर जाता है ,
हम बूढ़े हो जाते है,
और फिर तेज़ी से मरने लगते हैं।
( ये एक सच्ची कहानी है :) )
#बचपन #bachpan manojgupta0707.blogspot.com
तब दीपू एक सात साल का
छोटा सा,प्यारा सा,सांवला सा :) बच्चा था
दीपू की ख़ास बात थी उसके बाल
वो सामने से ऐसे थे
जैसे मोर की कलगी होती है ,
या फिर दूल्हे के सेहरे पे लगा ब्रोच होता है :)
वैसे तो दीपू हमेशा ही खुशबाश रहता था
पर आज वो कुछ ज्यादा ही खुश था क्युकी
आज उसके बड़े भैया मनु की शादी थी
घर में काफी भीड़-भाड़ थी ,दूर-दूर से रिश्तेदार आये हुए थे
हर तरफ गहमा-गहमी थी
तभी डोर बेल बजी
दीपू भाग के झज्जे में गया ,उसने पहली मंजिल से ही झाँक के देखा
घोड़ी आ गयी थी
( भारत में हिन्दू लोगों में शादी में दूल्हा घोड़ी पे बैठ के दुल्हन ब्याहने जाता है :) )
उसने अंदर आकर अपने पापा मुरली और ताऊ राजेंद्र जी को उत्साह से बताया-
"घोड़ी आ गयी,
घोड़ी आ गयी "
ये सुनकर मुरली और राजेंद्र जी भी बहुत खुश हो गए
और जल्दी से नीचे गए
दीपू फिर से भाग के छज्जे पे आ गया
और नीचे घोड़ी को निहारने लगा
वो एक बहुत ही सुन्दर ,एक दम सफ़ेद ,ऊंचे कद की , तंदुरुस्त घोड़ी थी
उसने ऊपर से सुना ,ताऊ राजेंद्र जी ,हँसते हुए उसके पापा मुरली से कह रहे थे-
"मुरली तू अपनी शादी में घोड़ी पे नहीं बैठ पाया था ना " :)
मुरली- "भाईसाहब आपको नहीं पता क्या ? :)
आपने ही तो मेरी शादी इतनी जल्दबाज़ी में करा दी थी ,
हम तो लड़की देखने गए थे ,
पसंद आ गयी तो आपने मुझे घेर के उसी दिन २ घंटे में वहीँ मेरी शादी करा दी थी"
"मेरी तो घोड़ी चढ़ने की तमन्ना दिल ही दिल में रह गयी " :)
दीपू के पापा मुरली हँसते हुए बोले थे
राजेंद्र ताऊ जी-"कोई बात नहीं मुरली तेरी ये तमन्ना आज पूरी किये देते हैं "
"इस साले घोड़ी वाले को थोड़ी देर के काम के लिए इतने पैसे दिए हैं
अब ये आ भी जल्दी गया है तो चल तुझे घोड़ी बैठने का एक्सपीरियंस कराते हैं"
मुरली जोर-जोर से हंसने लगा , बोला -
"भाईसाहब मज़ाक कर रहे क्या
राजेंद्र जी - "अरे नहीं मैं मज़ाक क्यों करूंगा "
मुरली- "अरे भाईसाहब कॉलोनी में लोग क्या सोचेंगे ? "
राजेंद्र जी - "अबे क्या सोचेंगे ,हमने क्या किसी साले की भैस खोली है "
"पूरे पैसे दिए हैं , आजा बैठ जा "
मुरली हँसते हुए बोला - " नहीं भाईसाहब मैं तो नहीं चढूँगा "
राजेंद्र जी - "चल मैं चढ़ता हूँ ,बाद में तू चढ़ जाइयो "
राजेंद्र जी घोड़ी वाले से बोला - "चल भाई पहले हम ट्राई करेंगे "
घोड़ी वाला बेचारा कभी राजेंद्र जी का मुँह देखे कभी मुरली का :)
मरता क्या ना करता ,उसने देखा की
ये दोनों दूल्हे तो गुट्टे मतलब नाटे हैं :)
मेरी घोड़ी इतनी ऊंची है,ये चढ़ेंगे कैसे
तो वो बोला- "बाउ जी आप इस मुंडेर पे खड़े हो जाओ ,
मैं घोड़ी यहाँ लाता हूँ "
"यहाँ से आप चढ़ जाओगे"
(उसने घर के बाहर बने ऊँचे चबूतरे की और इशारा किया)
राजेंद्र जी उस चबूतरे पे चढ़ गए
घोड़ी वाला घोड़ी पास ले आया और पहले राजेंद्र जी को घोड़ी पे बैठा दिया
घर के बिलकुल सामने बड़ा सा पार्क था जिसके चारों और करीब 60 कोठियां बनी हुयी थी
अब घोड़ी वाले ने राजेंद्र जी को घोड़ी पे बिठाकर पार्क का एक पूरा चक्कर लगवाया
चक्कर पूरा करके आते हुए रज्जन हँसते हुए मुरली से बोला -
"देख मुरली मैं तो दूसरी बार घोड़ी पे बैठ लिया ,
तू कब बैठेगा ,आजा "
"अब तू आजा "
राजेंद्र जी को घोड़ी पे बैठ चक्कर लगाते देख मुरली की भी झिझक खुल गयी थी
राजेंद्र जी के उतरते ही अब वो भी उस चबूतरे पे चढ़ा
और घोड़ी वाले ने अब मुरली को घोड़ी पे बिठा दिया
मुरली ने बड़ी शान से पूरे पार्क के २ चक्कर लगाए
उसे तो ऐसा ही लग रहा था क आज उसी की शादी है
और ये उसकी घुड़चढ़ी हो रही है
उसके दिल का एक अरमान जो कभी अधूरा रह गया था
आज पूरा हो गया था :)
ऊपर पहली मंज़िल के झज्जे पे खड़ा दीपू
जोर-जोर से हंस रहा था
उसने देखा था की पड़ोसी भी
जो अपने-अपने झज्जो पे या रोड पे खड़े थे
उन दोनों भाइयो राजेंद्र और मुरली को देख कर हंस रहे थे
कुछ बुरा सा मुँह भी बना रहे थे
पर ये दोनों भाई राजेंद्र और मुरली तो जैसे इस सब से बिलकुल ही अनजान थे :)
वो दोनों भाई तो बस अपनी ही धुन में मस्त थे
वो दोनों जोर- ज़ोर से खुद अपने ऊपर ही हंस रहे थे
एक बचपना था उन दोनों में :)
दीपू को बार-बार ताऊ जी रज्जन की बात कानों में सुनायी दे रही थी-
"अबे लोग क्या सोचेंगे ,
इससे हमें क्या ?
हमने क्या किसी साले की भैस खोली है "
आज 24 साल बाद भी जब-जब मनु की शादी की चर्चा होती है तो
सब इस घटना को याद करके इतना हँसते है :)
सच तो ये है की हमें अपने अंदर के बचपन को कभी मरने नहीं देना चाहिए :)
जिस दिन ये बचपन मर जाता है ,
हम बूढ़े हो जाते है,
और फिर तेज़ी से मरने लगते हैं।
( ये एक सच्ची कहानी है :) )
#बचपन #bachpan manojgupta0707.blogspot.com
मनु भाई,
ReplyDeleteआपकी यह रचना पढ़कर मेरे बचपन के बहुत से सुन्दर और यादगार पल ताजा हो गऍ। परिवार में सबसे बड़े भाई की शादी पर सबसे छोटे भाई की खुशी का वर्णन करना बहुत ही कठिन है। आज इस रचना के जरिए फिर से अपने बचपन को जीने का मौका मिला।��
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