Wednesday, May 27, 2020

मेरा जूता

मेरा जूता जगह-जगह से फट गया है धरती चुभ रही है मैं रुक गया हूँ जूते से पूछता हूँ⁠— 'आगे क्यूँ नहीं चलते?' जूता पलटकर जवाब देता है⁠— 'मैं अब भी तैयार हूँ यदि तुम चलो!' मैं चुप रह जाता हूँ कैसे कहूँ कि मैं भी जगह-जगह से फट गया हूँ।" —सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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