मेरा जूता
जगह-जगह से फट गया है
धरती चुभ रही है
मैं रुक गया हूँ
जूते से पूछता हूँ—
'आगे क्यूँ नहीं चलते?'
जूता पलटकर जवाब देता है—
'मैं अब भी तैयार हूँ
यदि तुम चलो!'
मैं चुप रह जाता हूँ
कैसे कहूँ कि मैं भी
जगह-जगह से फट गया हूँ।"
—सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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