Sunday, June 7, 2020

हैसियत, 1

"तेरी हैसियत ही क्या है
  हाउ डेअर यू प्रोपोज़ मी "
  तुनक कर जोर से चीखी थी स्वीटी

"मैं तुमसे प्यार करता हूँ स्वीटी "
  अनिल मायूसी से बोला था

"प्यार करता है ,माय फुट
कभी आईने में शक्ल देखी है अपनी ??
अरे अपनी औकात तो देख
माँ-बाप का तेरे पता नहीं
दूसरों के टुकड़ों पर तू पलता है "
स्वीटी फिर गरजी थी

"तू चल यहाँ से स्वीटी
 यहाँ सीन क्रिएट मत कर "
और स्वीटी की बड़ी बहन बीनू ,स्वीटी को खींचते हुए वहां से ले गयी

और अनिल वहीं खड़ा रह गया

अनिल जब कोई पांच वर्ष का था
तो उसके पापा हार्ट फ़ैल से चल बसे थे
अनुभवहीन माँ बिज़नेस को ठीक से संभाल नहीं पायीं
तो बिज़नेस में लगातार हो रहे नुक्सान और पति की असमय मौत के ग़म ने
उन्हें पहले डिप्रेशन
और बाद में मेन्टल इलनेस का बीमार बना दिया
अनिल के मामा ज्यादा समृद्ध तो नहीं थे
पर जितना उनसे बन पड़ा,
उन्होंने अपनी बहन के लिए किया
आखिरकार अनिल की माँ को एक "मेन्टल केयर सेण्टर" में भर्ती करना पड़ा
और अनिल को उसके मामा घर ले आये
मामाजी के 4 बच्चे पहले थे तो चाहकर भी वो
भांजे को प्राइवेट स्कूल में दाखिल नहीं करा पाएं
अनिल एक सरकारी स्कूल में जाने लगा
मामा के घर जाने-अनजाने में जब भी किसी खाने की चीज़ या किसी सुविधा का बटवारा होता तो
अनिल के हिस्से में चूरा ही आ पाता
बच्चा था ,तो मामा से शिकायत भी करता था
पर बड़े होते-होते वो मामा की मजबूरियाँ और अपनी हैसियत जान गया था

अनिल की जिंदगी में सब कुछ बदसूरत था
बस एक ही चीज़ खूबसूरत थी
"स्वीटी"
स्वीटी अनिल के मामा के दोस्त गोपाल जी की बेटी थी
पड़ोस में ही रहती थी
बचपन में मोहल्ले के सारे बच्चे
अनिल,अनिल के मामाँ के चारों बच्चे, स्वीटी ,स्वीटी की बहन बीनू और
और भी मोहल्ले के कई सारे बच्चे एक साथ खूब खेलते ,
मस्ती करते
पर अनिल को भाती थी तो बस स्वीटी
स्वीटी थी भी बेहद खूबसूरत
जैसे हाथ लगाओ मैली

बचपन में तो सब ठीक रहता है
ना माँ-बाप बच्चों को रोकते है
ना खुद बच्चों को कोई आर्थिक असमानता का पता होता है
पर जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते है
बड़े लोगों वाली सारी समझदारियाँ उनमे भी आने लगती है
और फिर एक दिन एक जैसी आर्थिक परिस्तिथी के बच्चे एक तरफ हो जाते है
दूसरे दूसरी तरफ
यहाँ दिक्कत ये हुयी की अनिल को छोड़कर सब एक तरफ होते गए
और अनिल पूरे  घर-परिवार-मोहल्ले के बच्चो में अलग पड़ गया

दसवीं कक्षा के बाद तो ये दूरी एकदम साफ़ हो गयी
अनिल के अलावा सारे बच्चे कैट,नीट,बी टेक
जाने क्या-क्या एंट्रेंस की कोचिंग में बिजी हो गए थे
सब लड़के-लड़कियां अब अपने फिजिकल एपीरिएंस,पर्सनालिटी,
ऐसे जूते,वैसे कपडे,वो परफ्यूम,ये बैग में बिजी रहते
और अनिल इन सब से अलग जीवन की बेसिक सुविधाओं के साथ गुजारा करता
बारहवीं के बाद जब उसका इंजीनिरिंग में सीधा नंबर नहीं आया तो
उसने डोनेशन के रास्ते इंजीनिरिंग कॉलेज में सीट का तो सपना भी नहीं देखा
कौन देता उसको इतनी बड़ी रकम ?
तो उसने " GOVT.-आई टी आई " में दाखिला ले लिया
अब तो वो दिखने भी सबसे अलग ही लगने लगा था
आई टी आई में उसके सहपाठी सब गरीब घर के बच्चे
वहां की ड्रेस सफ़ेद कमीज और खाखी पैंट
सस्ते नाइ से कटवाए बेतरकीब बाल
कपडे,जूते सब सस्ते और साधारण
और इस साधारण से लड़के ने आज प्रोपोस कर दिया था
अपनी बचपन की दोस्त और
कान्वेंट स्कूल में पढ़ रही ,
वेल ग्रूम्ड ,
स्कूल QUEEN
स्वीटी को

ये इंकार केवल एक इंकार नहीं था
ये एक तरह से अनिल के जीवन का
उसकी हैसियत का
कड़वा सच था
अपना सच पता तो सबको होता है
पर सीधे दिल में जाकर तब लगता है
जब कोई दूसरा हमें ये बताता है
और अगर वो कोई दूसरा ,वो इंसान हो
जिसकी निगाहों में आप सबसे ऊंचा मकाम पाना चाहते है
जिसे आप खुद दिल से बेपनाह चाहते है
तो दिल टूट जाता है
यही अनिल के साथ भी हुआ था

इसी साल स्वीटी का भी बंगलौर के उसी इंजीनिरिंग कॉलेज में एडमिशन हो गया
जहाँ स्वीटी की बहन बीनू पहले से ही पढ़ रही थी
तो वो भी बंगलौर चली गयी

दिल्ली बंगलौर की दूरी भी अनिल के प्यार को कम नहीं कर सकी थी
अनिल ने ITI से पास आउट होते ही
एक फैक्ट्री में फिटर की नौकरी कर ली
उसका काम था मशीनो की देख-रेख करना
उसकी तनख्वाह सिर्फ दस हज़ार रूपये थी
फैक्ट्री में डोरमेट्री थी और कैंटीन भी
तो अब उसे अपनी जरूरतों के लिए
मामा के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता था
बल्कि अब वो जब भी मामा के घर जाता
कुछ ना कुछ लेके जाता
फल,मिठाई या फिर मामा की फेवरेट शराब
मामा के सभी बच्चे भी घर दूर अलग-अलग शहरों में पढ़ रहे थे
तो अब अनिल मामा का सहारा बन गया था
कोई भी काम हो
मामा को तो अब बस अनिल ही दीखता था

अनिल अपनी तनख्वाह मिलते ही कोई ना कोई महँगा गिफ्ट स्वीटी को बंगलौर कुरियर करता
न्यू ईयर,वैलेंटाइन,होली,दीवाली और जाने क्या-क्या
वो हर हफ्ते बंगलौर फोन करता
पर स्वीटी उससे ज्यादा बात नहीं करती थी
हाँ बीनू से अक्सर बात हो जाती थी

इधर फैक्ट्री में उसके मालिक खुश थे
अनिल की मेहनत और समय से मैंटेनेन्स  करने से
उसका प्लांट फैक्ट्री के बाकी सारे प्लांट से अच्छी प्रोडक्शन पे था
यहाँ ब्रेकडाउन नहीं थे और प्रोडक्ट क्वालिटी अच्छी थी

और बस दो ही साल बाद जब मेन्टेनन्स इंजीनियर रिटायर हुए
तो अनिल ने फैक्ट्री में उनकी जगह ले ली
अब उसे फैक्ट्री से एक छोटी कार
और अपना इंडिविजुअल रूम भी मिल गया था

अनिल ने अपनी ये खुशी बताने के लिए स्वीटी को फोन किया
लगभग हमेशा की ही तरह
आज भी बीनू से ही बात हुयी

"स्वीटी की शादी हो रही है अनिल "
बीनू ने धीरे से कहा था
अनिल तो जैसे ...
"बीनू तुम प्लीज मेरी स्वीटी से बात कराओ
मैं अब वो नहीं रहा बीनू
मेरी सैलरी भी अब पचास हज़ार हो गयी है
गाड़ी भी है
अपना कमरा भी है "
लगभग रोता सा बोल रहा था अनिल

"अनिल, स्वीटी की लव मैरिज हो रही है "
बीनू ने ठन्डे स्वर में बोला था
और फोन रख दिया
बीनू की ये बात सुनकर अनिल आकाश से गिरा था
वो सोच रहा था की
ऐसा कैसे ??
अनिल ने फिर फोन मिलाया
"बीनू पर स्वीटी ने तो कभी मुझे बताया ही नहीं
मैं तो हमेशा स्वीटी से बात करता था "
अनिल गिड़गिड़ाया
"अनिल तुम बात करते थे
पर स्वीटी ने तुमसे कभी बात नहीं की
वो तो फोन उठाते ही हां-ना करके
फोन मुझे दे देती थी
तुम मुझसे ही हमेशा स्वीटी के बारे में बात करते थे "
बीनू कुछ झिझक-झिझक के संभल के बोल रही थी
अनिल का दिमाग .......
अब उसे एक-एक बात याद आ रही थी
स्वीटी हमेशा
"बिजी हूँ "
"कहीं जाना है "
"मुझे पढ़ना है "
कोई ना कोई बात कहकर हमेशा फोन बीनू को दे देती थी
और फिर बीनू ही उसे बताती थी की
स्वीटी को उसका भेजा गिफ्ट मिला
उसे कैसा लगा
अनिल बंगलौर आने को कहता
तो बीनू कोई ना कोई बात कहकर अनिल को आने से रोक देती
स्वीटी और बीनू दिल्ली आते तो भी हमेशा ही कुछ ना कुछ हो जाता
वो कभी भी ठीक से स्वीटी से मिल नहीं पाता था
"पर बीनू मेरे भेजे वो गिफ्ट तो स्वीटी को अच्छे लगते थे ना ?
फिर अब क्या हो गया ?

अनिल के ये बात सुनकर बीनू सकपका गयी
वो चुप हो गयी थी
उसे समझ नहीं आ रहा था की वो अनिल को कैसे बताये
की

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