Sunday, June 7, 2020

हैसियत, 2

बीनू की तरफ से फोन पर खामोशी छाई हुए थी
उधर अनिल बार-बार एक ही बात पूछ रहा था
बीनू शर्म और पछतावे में घिरी चुप थी
पर कब तक
आखिर एक-एक शब्द को तोलते हुए वो बोली-
"अनिल मुझे माफ़ कर दो "
"माफ़ "
"ये क्या कह रही हो बीनू तुम "- चीखा सा था अनिल
"अनिल वो सारे गिफ्ट मैं लेती थी "
बीनू ने इतना धीमा कहा था की उसे खुद को भी सुनाई नहीं दिया था
"बोलो बीनू कुछ बोलो "- अनिल फिर चिल्लाया
"बोलो ना मैंने - वो ..सारे ..गिफ्ट.. मैं ..लेती ..थी "
अब बीनू ने भी पूरे जोर से चिल्ला कर बोला था
"बीनू ....."
"ये तुम....
"नहीं हो सकता ...
ये नहीं हो सकता बीनू ...
बीनू तुम कैसे ये सब ... "
अनिल ने दुखी मन से कहा
दोनों तरफ चुप्पी थी
और फिर अनिल ने फोन रख दिया

अनिल सर पकड़ कर वहीँ अपने बिस्तर पे बैठ गया
उसका सारा जीवन उसके सामने मूवी की तरह चल रहा था
बचपन
पड़ोस के सारे बच्चो का साथ में खेलना
उसका रोज़ अपनी टॉफ़ी भी स्वीटी को दे देना
बात-बात में सब बच्चो का उसका मज़ाक बनाना
उसका स्वीटी को प्रोपोस करना
स्वीटी का कहा एक-एक अपमान भरा शब्द
उसका बार-बार बंगलौर फोन करना
हमेशा स्वीटी के बात ना कर पाने के नए बहाने
फिर हमेशा बीनू का फोन ले लेना
उससे अच्छे से बात करना
बीनू का उसे बताना की स्वीटी को वो गिफ्ट कितना अच्छा लगा
उसके विचारों का कारवां टूटा फोन की घंटी से
बीनू का फोन था
अनिल ने फोन काट दिया
पर कब तक काटता
फोन बार-बार बज रहा था
अनिल ने फोन स्विच ऑफ कर दिया
सोचते-सोचते , परेशान होते कब उसकी आँख लग गयी
पता नहीं चला
सुबह आँख खुली कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था
अनिल ने बेमन से उठकर गेट खोला
सामने उसका असिस्टेंट सुभाष था
"सर आप ठीक है
आपका फोन बंद था
प्लांट न ० .-२  में कुछ दिक्कत है
मैंने देखा पर मुझसे नहीं हो रहा सर
प्लीज आप आ जायें  "- सुभाष एक सांस में बोला था

प्लांट चालू करवा कर अनिल फिर स अपने कमरे पे आ गया था
उसने अपना फोन चालू किया तो कई मिस कॉल थे
सुभाष, बीनू और भी कई सारे
बीनू का मैसेज भी था -
अनिल पढ़ने लगा
"अनिल मुझे माफ़ कर दो "
"मैंने तुम्हारे साथ बोहोत बुरा किया है "
"पर यकीन मानो जान-बूझ कर नहीं किया
"ये शुरू हुआ था एक मज़ाक से "
तुमने स्वीटी को पहली बार गिफ्ट में एक खूबसूरत घड़ी भेजी थी
मैंने स्वीटी को दी थी
उसने कहा वापिस भेज दो
मैंने भेजनी भी चाही पर
जब तुम्हारा फोन आया ये पूछने के लिए की
स्वीटी को घड़ी कैसी लगी ?
और तुमने ये कहा की तुम अपना पूरा संडे घूमते रहे थे
इस घड़ी को ढूंढने के लिए
तुम इतने खुश थे की
मैं तुम्हे कह ही नहीं पाई की - स्वीटी वो घड़ी वापिस कर रही है
अच्छा बुरा पता नहीं बस मैं कह ही नहीं पायी
और एक दिन मैंने वो घड़ी पहनी
और वो इतनी ख़ूबसूरत थी की
फिर मैंने कभी वो घड़ी हाथ से उतारी ही नहीं
वो पहली बार था
उसके बाद तुमने सनग्लासेस भेजे थे
फिर एक महंगी जीन्स
और फिर इयररिंग्स
और फिर कुछ और
और फिर कुछ और
तुम हर बार फोन करते थे और मैं हर बार तुम्हे बताती थी की
स्वीटी को वो गिफ्ट कितना अच्छा लगा था
मैं जो भी उस गिफ्ट को पाकर महसूस करती थी
बस वहीँ तुम्हे बता देती थी की स्वीटी ऐसा महसूस कर रही है
तुम बहुत खुश हो जाते थे
ऐसा मत सोचना की मैं सहज थी
पता था मुझे के जब ये राज़ खुलेगा तो तुम
नफरत करोगे मुझसे
स्वीटी को जब पता चला था तो उसने भी कहा था
"दीदी मत करो
गलत है "
पर अनिल मुझे तो ये कभी गलत लगा ही नहीं
मुझे तो लगने लगा था की जैसे ये गिफ्ट तुम मेरे लिए ही भेजते हो
मुझे तुमसे बात करनी है अनिल
प्लीज मुझसे बात करो
मुझे तुमसे मिलना है अनिल
एक बार बस एक बार
-बीनू

अनिल का दिमाग जैसे फटने को था
इतना बड़ा धोखा
पूरा दिन वो चुपचाप अपने कमरे मे पड़ा सोचता रहा
फिर रात को बहुत लेट उसने बंगलौर की फ्लाइट बुक की
और बीनू को मैसेज कर दिया
"Coming by sunday 9-30am banglore time flight"

manojgupta0707.blogspot.com

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