Wednesday, June 3, 2020

"ताई "

"ताई " 


को सब ताई क्यों कहते हैं 
ये तो पता नहीं
बस इतना पता है की
क्युकी सभी ताई कहते हैं
तो हर नया मिलने वाला भी उसे ताई ही कहना शुरू कर देता है
वैसे ही जैसे जगत मामा सुना होगा ना आपने
ऐसे ही इस कहानी में मुख्य पात्र ताई है
ऐसा नहीं है की ताई हमेशा से बूढ़ी ही थी
अरे बूढ़ा तो कोई भी पैदा नहीं होता
तो यकीनन ताई भी कभी बच्ची ही पैदा हुयी थी
जिन्होंने ताई को बचपन से जाना है
वो कहते है की ताई बड़ी हेकड़ थी बचपन में
हालांकि ताई थी 6 भाई-बहनो में सबसे छोटी पर
अपने से बड़े बच्चो को भी वो अपने आगे कुछ नहीं समझती थी
बड़े भाई-बहन भी ताई की शरण लेते थे ,
मोहल्ले के बच्चो से लड़ाई होने पे

ताई की शादी बहुत ही जल्दी हो गयी थी
कोई 15 साल की उम्र में ही
पति 10 साल बड़े थे
पति के छोटे भाई की शादी पहले ही हो चुकी थी और उनका एक बच्चा भी था
तो घर में आते ही पहले तो ताई उस बच्चे की ताई बनी
फिर पूरे घर की
फिर पूरे मोहल्ले की
और अब जीवन के इस दौर में आकर वो जगत ताई बन गयी हैं
ताई के पति ढेर सारा पढ़ने -लिखने के बाद
तब किन्ही सेठजी के यहाँ खाते लिखते थे
अब एक तो वो पति ठहरे
ऊपर से नौकरी भी करते थे
तो घर आकर तो पत्ता भी उठाना भारी होता था उनके लिए
तो घर का सारे काम के अलावा ,
हाथ-चक्की पर घर भर का गेहू पीसना और
हर रात पति की माँ यानि अपनी सासु माँ के पैर ,
तब तक दबाना जब तक वो गहन निंद्रा में ना सो जाए,
ताई का परम कर्तव्य था
और सासु माँ का परम कर्तव्य था
ताई को हर समय गाली देना
तो यूँ समझिये ना जैसे गाली,गाली ना हुयी
जैसे आशीर्वाद ही दे रही हों
ताई शायद पहली और आख़िरी बार मन से तब खुश हुयी होंगी
जब वो पहली बार माँ बनी थी
अब बेटा जना था तो
कुछ दिन से सासु माँ की गालियां भी बंद सी थी
पर ईश्वर कहाँ चाहता था के ताई सुख में रहें
तो बेटा जब 2 -3 बरस का रहा होगा
तो एक मनहूस दिन
वो खेलते-खेलते सीढ़ियों से गिर गया
यूँ  तो बच्चे अक्सर ही गिरते-खेलते रहते ही हैं
पर ये तो ताई का बेटा था ना
तो कुछ भी साधारण तो ईश्वर ने कहाँ करना था
तो बड़ी ही आसाधारण सी बात ये हो गयी की
ताई के बच्चे को दिमाग में कुछ ऐसी चोट लगी थी
की अब उसका कोई भी अंग काम नहीं कर रहा था
कठोर शब्दों में कहूँ तो
वो अब एक ऐसा बच्चा बन रह गया था
जो बस बिस्तर पे पड़े-पड़े
किसी दूसरे के हाथ से खिलाये हुए खाने को
बस मल में तब्दील कर सकता था
डॉक्टरी भाषा में इसे कहते है
वेजिटेबल यानी पेड़ पौधों की तरह हो जाना
ना बोलना,ना चलना फिरना और ना ही कोई भी और काम खुद कर पाना
ताई ने अपने सामर्थ्य से बाहर जाकर पहले डॉक्टर, फिर वैद्य हकीम ,
फिर बाबा-तांत्रिक , मतलब जो भी एक इंसान कर सकता है
ताई ने किया
कई सालों बाद जब वो हर जगह से निराश हो गयी
और अपनी सारी पूंजी भी इस भाग-दौड़ और उपचार में स्वाहा कर चुकी
तब उन्होंने इस होनी से समझौता कर लिया
ताई साल के 24 घन्टे और 365 दिन बिस्तर पे रहने वाले
इस बच्चे का सारा काम खुद अपने हाथ से करती थी
उसे अपने हाथ से खाना खिलाने से लेकर
उसको उसकी खाट पे ही नहलाना
और वहीँ उसका मलमूत्र भी साफ़ करना
जीवन अपनी गति से बढ़ता रहा
ताई के अब चार और भी बच्चे थे
वो भी ताई क इस सब में मदद करने की कोशिश तो करते थे पर
ऐसा कठिन काम करना और वो भी जो
एक दिन का नहीं
एक महीने का भी नहीं
बल्कि सालों तक करना था ,
हर रोज़ , दिन में कई-कई बार

सारे नाते-रिश्तेदार से लेकर
यहाँ तक की डॉक्टरों के पास भी
ताई को इस नार्किक जीवन से मुक्ति देने के लिए कई सारे रास्ते थे की
कैसे ताई इस समस्या से छुटकारा पा सकती है
ये तो बस ताई थी जो सबकी सलाह के विपरीत
निरंतर उस निर्जीव जीव की सेवा किये जा रही थी
पूरे 50 वर्षों  तक
जाने वो क्या था ताई के अंदर
मातृत्व ,
मानवता ,
या कुछ और
ये समझना -समझाना भी अविश्वसनीय है

सालों से उस निर्जीव जीव के मल -मूत्र बिस्तर में ही करने की वजह से
उसके पूरा दिन-रात अजीब आवाज़े निकालते रहने की वजह से
उनके घर में एक अजीब सी बदबू हो गयी थी
घर के सब लोगों को तो आदत पड़ गयी थी
पर बाहर का कोई आकर ताई के घर में ज्यादा देर कहाँ रुक पाता था
और ताई भी कहाँ किसी और के घर कभी  2 - 3 घन्टे से ज्यादा रुक पाती थी
क्युकी उस निर्जीव जीव का मल -मूत्र और कौन साफ़ करता ?
और क्युकी वो किसी और के हाथ से तो खाना ही नहीं खाता था
यहां तक के ताई के हाथ से भी खाने से पहले ,
उस खाने में से पहले एक कौर ताई खुद खाती थी 
फिर वो खाना खाता था 
अविश्वसनीय ये भी है की एक इंसान जो पिछले 5० वर्षोँ से बिस्तर पर ही पड़ा था 
खाना खाने और मल करने के अलावा जिसका शरीर कोई और काम कर नहीं पाता था 
उसे अपने जीवन से इतना प्यार था 
इतना प्यार 
की वो ये सोचता है की कही उसके खाने में जहर ना मिला हो 
इसलिए उसे अपनी माँ तक पर भी विश्वास नहीं था 
वो माँ जिसको वो देखता आ रहा था की
वो माँ पिछले 50 वर्षों से उसका सारा काम
खाना-पीना, नहाना-धोना ,मल -मूत्र कराना
और साफ़ करना कर रही है 
अपना सारा जीवन नर्क किये दे रही है 
वो माँ भी उससे पहले खुद खाकर
ये प्रमाण दे के उस खाने में जहर नहीं है 
उस जीव को अपने उस नार्किक जीवन से भी इतना प्यार था 

और एक दिन उस निर्जीव जीव में स्वयं ही अपना शरीर त्याग दिया
वो पूरे 50 सालों तक उसी बिस्तर पर था
और ताई उन 50 सालों में जैसे
किसी तप में ,
साधना में थी

आज ताई जैसे निर्वाण पा गयी हैं
पूरे मोहल्ले ,पूरे कसबे की जगत ताई
बन गयी हैं
जहाँ वो अपनी सेवा दे पाती है
खुद साकार स्वरुप में मौजूद हो जाती है
और जहाँ वो मौजूद नहीं भी होती
वहाँ भी जीवंत उदहारण बनकर मौजूद होती है
और लोग असंभव कामों को भी संभव कर लेते है.

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