"अनुज
अनुज वो पैसे मिले ? "
शारदा जी ने अगले दिन सुबह ही अनुज को जगाते हुए पूछा
"पैसे, कौनसे पैसे ? "
नींद में भरे अनुज को कुछ याद कहाँ था
"अरे वो तेरे पांच हज़ार , जो कल खो गए थे ?? "
शारदा जी अब गुस्से में बोली थीं
"हाँ हाँ मिल गए , मिल गए "
और अनुज चादर ओढ़ कर फिर सो गया
शारदा जी हैरान सी कुछ देर वहीं खड़ी सोचती रहीं की
ये माजरा क्या है
उसके बाद शारदा जी ने फिर कई बार
अलग-अलग मौकों पे अनुज से उन खोये पैसो के बारे में पूछा
पर अनुज ने हमेशा गोल-मोल जवाब ही दिया
शारदा जी , चाहकर भी सरला से अब ये बात पूछ नहीं पा रहीं थी
उनको डर था की सरला बुरा मानेगी
तो कुछ दिन बाद ये बात आयी-गयी हो गयी
एक दिन अचानक सुबह तड़के
किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ से अनुज की नींद टूटी
अनुज को लगा जैसे कोई चोर घर में घुस आया है
वो दबे पाँव कमरे से बाहर आया तो देखा
बाहर कॉमन बाथरूम के बाहर
सरला फर्श पर बैठी कुछ चुन रही थी
शायद वो अभी नहा कर बाहर निकली थी
और बाथरूम के बाहर की साइड टेबल पर रखा
कांच का कोई बर्तन गिर कर टूट गया था
वो कांच के छोटे-छोटे टुकड़े बड़ी ही सावधानी से चुन रही थी
अनुज ने शायद पहली बार उसे गौर से देखा था
इतनी भी बुरी नहीं थी वो देखने में
बल्कि सुन्दर ही थी
अनुज चुपचाप चोरों की तरह वहीँ खड़ा
एकटक उसे तब तक देखता रहा
जब तक वो एक-एक कांच का टुकड़ा बीनकर
अपने कमरे में वापिस चली नहीं गयी
उस रात अपने बिस्तर पर लेटा अनुज यही सोच रहा था
"साली है गज़ब की सुन्दर "
हर सुबह की तरह अगली सुबह भी सरला रसोई में ही थी
उसने अनुज का नाश्ता टेबल पे रख दिया था
अचानक अनुज ने आवाज़ लगाईं
" माँ कहाँ हैं ? "
अनुज के इस सवाल से चौक सी गयी थी सरला
क्युकी अनुज तो उससे कभी कुछ बोलता ही नहीं था
"जी सुमन आंटी जी के यहाँ "
सरला ने रसोई से बाहर आकर धीरे से जवाब दिया
"माँ को बोल देना आज मैं देर से आऊंगा
कॉलेज के बाद एक दोस्त की बर्डे पार्टी है "
और मुस्कुराता हुआ अनुज जल्दी से घर के बाहर निकल गया
अनुज के आज के बर्ताव पे सरला सोच में पड़ गयी थी
ये क्या था
पहले तो कभी .....
तभी कुकर की सीटी बजी और सरला वापिस किचन में दौड़ी।
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