Monday, June 22, 2020

विधवा ,( कहानी ), 8


"अनुज,
अक्सर कोई देहलीज का पत्थर भी ,
जो हमारे घर के बाहर
बरसों,
यूहीं उपेक्षित सा पड़ा रहता है
हम नज़र भर के उस पत्थर को देखते भी नहीं 
पर जैसे ही कोई और आकर कह दे की 
"मैं ये पत्थर ले लूँ "
तो तुरंत हमें सारे जहां की खूबियां उसी पत्थर में दिखाई देने लगती हैं 
बस यही आपके साथ हुआ है "
दुखी मन से सरला ने फोन पर कहा 
अनुज हतप्रत सा रह गया , वो गुस्से में बोला
"क्या कहना चाहती हो तुम सरला साफ़-साफ़ कहो "
"साफ़ बात ये है की
आज आप मुझे कह रहे हो की मैं अंकुर से शादी से इंकार कर दूँ
पर क्यों ?
सरला ने सीधा सवाल किया था
"क्युकी
क्युकी मैं
मैं तुमसे प्यार करता हूँ सरला
हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ "
अनुज ने इतना कहकर जैसे राहत की सांस ली थी
ये वो बात थी जो अनुज खुद भी ना तो समझ पा रहा था
ना ही खुद से भी कह पा रहा था

"क्युकी आप मुझसे प्यार करते हो ?
प्यार ?
अरे अनुज पर जब में आपके घर में थी
आप ने तो ठीक से बात तक नहीं की मुझसे
प्यार तो बहुत बड़ी बात है
प्यार का मतलब भी मालूम है आपको ?
केवल घर का काम करना
शरीरों का मिल जाना प्यार नहीं होता
प्यार बहुत पवित्र चीज़ होती है
कहना बहुत आसान है ,
प्यार
पर निभाना ........."
इतना कहकर सरला ने फोन काट दिया था
अनुज वहीं खड़ा देर तक सरला की बातों का मतलब सोचता रहा

 Writer- Manoj Gupta,  manojgupta0707.blogspot.com

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