रमा जी आज फिर उदास थी
बहु स्वाति से आज फिर लड़ाई हुयी थी
बात ?
बात क्या होती
बातें तो वही छोटी-छोटी सी होतीं हैं
पर जब छोटों के दिल में बड़ों के लिए सम्मान ना हो
तो छोटी सी बात भी राई का पहाड़ बन जाती है
सो वही हो रहा था
रमा जी सोचती थी , 45 साल शिक्षक रहीं वो
हज़ारों स्टूडेंट्स को पढ़ाया
एक से एक ढीठ स्टूडेंट्स
सबको संभाला ,
समझाया
उनका भविष्य बनाने में मदद की
पर आज वो अपने घर के ही दो स्टूडेंट्स को क्यों समझा नहीं पा रही है
आज उनके अपने घर में उनकी अपनी बहु से
हर रोज़ लड़ाई होती थी
और उन्हें गहरा दुःख तब होता
जब बेटा राहुल भी
बिना वजह जाने हमेशा ही
बहु की ही तरफदारी करता है
कितने चाव से वो एकलौते बेटे के लिए उसके पसंद की
बहु ब्याह के लाई थी
उनका बेटा और स्वाति दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे
स्वाति एक बहुत ही पैसे वाले परिवार से थी
और रमा जी एक रिटायर्ड विधवा शिक्षक
पति की मौत बरसों पहले ही हो गयी थी
पति की छोटी सी पेंशन आती थी
उनकी खुद की भी एक छोटी सी पेंशन आती थी
उन्ही थोड़े से पैसों में वो अपना खुद का पेट काटकर भी
राहुल को महंगे स्कूल और कॉलेज में पढ़ाया था
शादी के समय राहुल कोई काम भी नहीं करता था
रमा जी ने बहुत समझाया था की
पहले कोई नौकरी कर ले
फिर शादी
पर राहुल ना माना
पहले तो स्वाती के घर वाले भी इस शादी के सख्त खिलाफ थे
पर फिर अचानक जाने क्या हुआ के
वो एक बेरोज़गार निम्न-मध्यमवर्गीय लड़के राहुल को
अपनी बेटी देने को सहर्ष तैयार हो गए थे
एकलौते बेटे की जिद के आगे रमा जी भी नतमस्तक हो गयी
शादी के बाद कुछ दिन तो सब ठीक चला
पर फिर रोज़ छोटी-छोटी बातों पे रमा जी और बहु स्वाति का झगड़ा होने लगा
लगभग हर हफ्ते स्वाति का नाराज़ होकर वापिस अपने घर चले जाना
और फिर राहुल का उसको मना के वापिस लाना
अब बात और भी बढ़ती जा रही थी
अब अक्सर स्वाति के घरवाले रमा जी के घर आते और
झगड़ा करते
उनकी बातचीत में अब रमा जी के लिए गाली-गलौच भी होने लगी
बात अब और भी बढ़ी और अब स्वाति के घरवाले
ये गाली-गलौच रमा जी के घर के बाहर खड़े होकर
सड़क पर भी करने लगे थे
एक बार तो हद्द ही हो गयी
जब स्वाति के पिता सड़क पे खड़े-खड़े ही
रमा जी को गंदी गालियां दे रहे थे
रमा जी के पड़ोसियों ने उन्हें समझाना चाहा तो उन्होंने
उलटा रमा जी के चरित्र पर ही इलज़ाम लगाने शुरू कर दिए
रमा जी से अब सहन नहीं हो रहा था तो उन्होंने
स्वाती के पिता को कहा की
"अगर मैं इतनी बुरी इंसान हूँ
तो आप अपनी बेटी और दामाद को अपने घर ले जाएँ "
इस पर स्वाती के पिता बोले-
"ऐसे-कैसे ??
जाना तो तुझे है साली बुढ्ढी
तू जा हरद्वार या जहाँ भी तुझे जाना हो
मैंने अपनी बेटी की शादी तेरे इस निखट्टू बेटे से थोड़े की थी
इस मकान से की थी "
"तेरे इस बेटे ने ही कहा था -
पापाजी आप ये शादी होने दो,
मैं अपना मकान बेचकर कोई काम-धंधा कर लूंगा "
( "उन्होंने साथ ही चुपचाप खड़े राहुल और रमा जी के मकान की और इशारा करते हुए कहा था ")
सड़क पे हो रही ये बात वाकई में सड़क स्तर की ही थी
( रमा जी तो जैसे आसमान से गिरी
अब उन्हें सब समझ आने लगा था की क्यों
पहले राहुल से शादी के इतने विरोधी स्वाती के घरवाले
फिर अचानक ही शादी के लिए सहर्ष क्यों मान गए थे
क्यों बार-बार राहुल मकान के कागज़ मांगता रहता था
क्यों राहुल बार-बार ये कहता था की
इतना बड़ा मकान हम क्या करेंगे
इसे बेचकर छोटा ले लेते हैं
रमा जी का ये 500 गज का मकान
कभी 40 साल पहले मैन शहर से बहुत दूर
एक सुनसान सी कॉलोनी में स्तिथ था
जो रमा जी के पति ने उस समय कुछ सैकड़ों रुपयों में खरीदा था
पर आज 40 सालों के शहर विस्तार के बाद ये मकान अब
शहर के बीच में एक पॉश कॉलोनी में परिवर्तित हो गया था
और आज करोड़ों रुपयों का था )
खैर उस दिन की लड़ाई तो पड़ोसियों के दखल से किसी तरह स्थगित हो गयी
पर आज रमा जी का माँ का दिल फट गया था
कुछ दिन बीते
स्वाती की बहन की डेस्टिनेशन मैरिज गोवा में थी
तो स्वाती और राहुल 8 दिन के लिए गोवा चले गए थे
गोवा से वापिस आकर राहुल और स्वाति ने अपने मकान की डोर -बैल बजाई
कोई अपरिचित सा गठे बदन का पहलवान टाइप व्यक्ति बाहर आया
राहुल उसे देखकर चौंका -
"तुम कौन ....कौन हो ? "
"अबे तू कौन है -वो आदमी बोला था
"राहुल है के ?? "
"हाँ "- राहुल हकलाया
"तेरी माँ ये घर हमें बेच गयी है
तेरे लिए एक चिठ्ठी है ,
लाऊ हूँ "
वो अंदर जाकर एक चिठ्ठी लाया और राहुल के हाथ पे रख दी
और हँसता हुआ वापिस अंदर चला गया
बौखलाए राहुल और स्वाति ने जल्दी से चिठ्ठी खोली
अंदर एक चिट्टी और एक चेक था
वो रमा जी की ही लिखावट थी ,
राहुल पहचानता था
" राहुल बेटे ,
तुम दो चीज़े करना चाहते थे
तो दोनों मैंने खुद ही कर दी हैं
पहली, मैं हरद्वार के एक वृद्ध आश्रम में आ गयीं हूँ
दूसरी , तुम इस मकान को बेचना चाहते थे
तो मैंने बेच दिया है
मकान मेरे नाम था
तो मैं चाहती तो तुम्हे कुछ भी ना देती
तुम कुछ नहीं कर पाते
पर तुम तो बेटा नहीं बन पाये
पर मैं तो माँ हूँ ना
तो आधा हिस्सा तुम्हे इस चेक से दे रही हूँ
आधा मेरे बैंक में है
तुम्हे नॉमिनी बना दिया है
तो मेरे मरने के बाद वो भी तुम्हे मिल जाएगा
बेटे राहुल , तुम और स्वाति हमेशा खुश रहना "
रमा जी,एक शिक्षक ने
अपने एक और स्टूडेंट को
जीवन का सबक दे दिया था
बहु स्वाति से आज फिर लड़ाई हुयी थी
बात ?
बात क्या होती
बातें तो वही छोटी-छोटी सी होतीं हैं
पर जब छोटों के दिल में बड़ों के लिए सम्मान ना हो
तो छोटी सी बात भी राई का पहाड़ बन जाती है
सो वही हो रहा था
रमा जी सोचती थी , 45 साल शिक्षक रहीं वो
हज़ारों स्टूडेंट्स को पढ़ाया
एक से एक ढीठ स्टूडेंट्स
सबको संभाला ,
समझाया
उनका भविष्य बनाने में मदद की
पर आज वो अपने घर के ही दो स्टूडेंट्स को क्यों समझा नहीं पा रही है
आज उनके अपने घर में उनकी अपनी बहु से
हर रोज़ लड़ाई होती थी
और उन्हें गहरा दुःख तब होता
जब बेटा राहुल भी
बिना वजह जाने हमेशा ही
बहु की ही तरफदारी करता है
कितने चाव से वो एकलौते बेटे के लिए उसके पसंद की
बहु ब्याह के लाई थी
उनका बेटा और स्वाति दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे
स्वाति एक बहुत ही पैसे वाले परिवार से थी
और रमा जी एक रिटायर्ड विधवा शिक्षक
पति की मौत बरसों पहले ही हो गयी थी
पति की छोटी सी पेंशन आती थी
उनकी खुद की भी एक छोटी सी पेंशन आती थी
उन्ही थोड़े से पैसों में वो अपना खुद का पेट काटकर भी
राहुल को महंगे स्कूल और कॉलेज में पढ़ाया था
शादी के समय राहुल कोई काम भी नहीं करता था
रमा जी ने बहुत समझाया था की
पहले कोई नौकरी कर ले
फिर शादी
पर राहुल ना माना
पहले तो स्वाती के घर वाले भी इस शादी के सख्त खिलाफ थे
पर फिर अचानक जाने क्या हुआ के
वो एक बेरोज़गार निम्न-मध्यमवर्गीय लड़के राहुल को
अपनी बेटी देने को सहर्ष तैयार हो गए थे
एकलौते बेटे की जिद के आगे रमा जी भी नतमस्तक हो गयी
शादी के बाद कुछ दिन तो सब ठीक चला
पर फिर रोज़ छोटी-छोटी बातों पे रमा जी और बहु स्वाति का झगड़ा होने लगा
लगभग हर हफ्ते स्वाति का नाराज़ होकर वापिस अपने घर चले जाना
और फिर राहुल का उसको मना के वापिस लाना
अब बात और भी बढ़ती जा रही थी
अब अक्सर स्वाति के घरवाले रमा जी के घर आते और
झगड़ा करते
उनकी बातचीत में अब रमा जी के लिए गाली-गलौच भी होने लगी
बात अब और भी बढ़ी और अब स्वाति के घरवाले
ये गाली-गलौच रमा जी के घर के बाहर खड़े होकर
सड़क पर भी करने लगे थे
एक बार तो हद्द ही हो गयी
जब स्वाति के पिता सड़क पे खड़े-खड़े ही
रमा जी को गंदी गालियां दे रहे थे
रमा जी के पड़ोसियों ने उन्हें समझाना चाहा तो उन्होंने
उलटा रमा जी के चरित्र पर ही इलज़ाम लगाने शुरू कर दिए
रमा जी से अब सहन नहीं हो रहा था तो उन्होंने
स्वाती के पिता को कहा की
"अगर मैं इतनी बुरी इंसान हूँ
तो आप अपनी बेटी और दामाद को अपने घर ले जाएँ "
इस पर स्वाती के पिता बोले-
"ऐसे-कैसे ??
जाना तो तुझे है साली बुढ्ढी
तू जा हरद्वार या जहाँ भी तुझे जाना हो
मैंने अपनी बेटी की शादी तेरे इस निखट्टू बेटे से थोड़े की थी
इस मकान से की थी "
"तेरे इस बेटे ने ही कहा था -
पापाजी आप ये शादी होने दो,
मैं अपना मकान बेचकर कोई काम-धंधा कर लूंगा "
( "उन्होंने साथ ही चुपचाप खड़े राहुल और रमा जी के मकान की और इशारा करते हुए कहा था ")
सड़क पे हो रही ये बात वाकई में सड़क स्तर की ही थी
( रमा जी तो जैसे आसमान से गिरी
अब उन्हें सब समझ आने लगा था की क्यों
पहले राहुल से शादी के इतने विरोधी स्वाती के घरवाले
फिर अचानक ही शादी के लिए सहर्ष क्यों मान गए थे
क्यों बार-बार राहुल मकान के कागज़ मांगता रहता था
क्यों राहुल बार-बार ये कहता था की
इतना बड़ा मकान हम क्या करेंगे
इसे बेचकर छोटा ले लेते हैं
रमा जी का ये 500 गज का मकान
कभी 40 साल पहले मैन शहर से बहुत दूर
एक सुनसान सी कॉलोनी में स्तिथ था
जो रमा जी के पति ने उस समय कुछ सैकड़ों रुपयों में खरीदा था
पर आज 40 सालों के शहर विस्तार के बाद ये मकान अब
शहर के बीच में एक पॉश कॉलोनी में परिवर्तित हो गया था
और आज करोड़ों रुपयों का था )
खैर उस दिन की लड़ाई तो पड़ोसियों के दखल से किसी तरह स्थगित हो गयी
पर आज रमा जी का माँ का दिल फट गया था
कुछ दिन बीते
स्वाती की बहन की डेस्टिनेशन मैरिज गोवा में थी
तो स्वाती और राहुल 8 दिन के लिए गोवा चले गए थे
गोवा से वापिस आकर राहुल और स्वाति ने अपने मकान की डोर -बैल बजाई
कोई अपरिचित सा गठे बदन का पहलवान टाइप व्यक्ति बाहर आया
राहुल उसे देखकर चौंका -
"तुम कौन ....कौन हो ? "
"अबे तू कौन है -वो आदमी बोला था
"राहुल है के ?? "
"हाँ "- राहुल हकलाया
"तेरी माँ ये घर हमें बेच गयी है
तेरे लिए एक चिठ्ठी है ,
लाऊ हूँ "
वो अंदर जाकर एक चिठ्ठी लाया और राहुल के हाथ पे रख दी
और हँसता हुआ वापिस अंदर चला गया
बौखलाए राहुल और स्वाति ने जल्दी से चिठ्ठी खोली
अंदर एक चिट्टी और एक चेक था
वो रमा जी की ही लिखावट थी ,
राहुल पहचानता था
" राहुल बेटे ,
तुम दो चीज़े करना चाहते थे
तो दोनों मैंने खुद ही कर दी हैं
पहली, मैं हरद्वार के एक वृद्ध आश्रम में आ गयीं हूँ
दूसरी , तुम इस मकान को बेचना चाहते थे
तो मैंने बेच दिया है
मकान मेरे नाम था
तो मैं चाहती तो तुम्हे कुछ भी ना देती
तुम कुछ नहीं कर पाते
पर तुम तो बेटा नहीं बन पाये
पर मैं तो माँ हूँ ना
तो आधा हिस्सा तुम्हे इस चेक से दे रही हूँ
आधा मेरे बैंक में है
तुम्हे नॉमिनी बना दिया है
तो मेरे मरने के बाद वो भी तुम्हे मिल जाएगा
बेटे राहुल , तुम और स्वाति हमेशा खुश रहना "
रमा जी,एक शिक्षक ने
अपने एक और स्टूडेंट को
जीवन का सबक दे दिया था
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