उन दो तमाचों के बाद
अरुण की तो जैसे
पूरी ज़िंदगी ही बदल गयी थी
कॉलेज में सब लोग उसे आता-जाता देख कर हँसते थे
सीनियर्स उसको आते-जाते ऐसे लुक देते थे
जैसे कच्चा ही चबा जाएंगे
उसके अपने फ़्रेशी दोस्त भी सीनियर्स के डर के मारे
ना उससे मिलते थे
ना उससे बात करते थे
कॉलेज की सारी लड़कियों के लिए वो ऐसे था
जैसे वो कोई रेपिस्ट हो
अब अपनी क्लास में भी वो अकेला ही बेंच पे बैठता था
अरुण के मन में हर रोज़ ये ही ख़याल आता था की
क्यों ना वो ये कॉलेज छोड़ के
वापिस पटना ही चला जाए
इसी परेशानी में
एक दिन उसने अपनी मकान मालकिन को बोला की
वो रूम खाली कर रहा है
कृपया उसका डिपोसिट वो वापिस दे दें
मकान मालकिन रुखसार जी एक विधवा औरत थी
जिनकी केवल एक ही बेटी थी
अपने इसी घर के एक फ्लोर पे वो खुद रहती थी
और उनके घर-गुजर का केवल एक ही साधन था
उनके इस घर के बाकी तीन फ्लोर्स से आ रहा किराया
उनका ये घर युनिवेर्सिटी एरिया के पास था
तो अधिकतर स्टूडेंट्स ही उनके किरायेदार होते थे
अब सेशन के बीच में ना तो उन्हें कोई और किरायेदार मिलना था
और ना उनके पास वो तीन महीने की सिक्योरिटी वापसी देने का कोई
इंतज़ाम था
तो उन्होंने अरुण को बात करने के लिए बुलाया
वो जानना चाहती थी की
वो पढ़ाई के साल के बीच में ही क्यों वापिस जाना चाहता है
अरुण क्या बताता
हर आदमी अपनी कहानी अपनी सुविधा से ही सुनाता है ना
अब कहाँ कोई गांधी है
की सच बोल दे की उसने क्या चोरी की है
तो अरुण ने भी रुखसार जी को बस इतना बताया की उसे
कॉलेज के कुछ सीनियर्स परेशान कर रहे है
इसलिए उसका दिल यहाँ दिल्ली में नहीं लग रहा है
रुखसार जी ने भी दुनिया की सारी उठा-पटक झेली हुयी थी
और उनके खुद के हक़ में भी यही था की
अरुण कमरा खाली ना करे
तो उन्होंने अरुण को पढ़ाई में दिल लगाने के लिए समझाया
कहा की कॉलेज में कोई परेशानी है तो
कॉलेज कम जाये
रूम में ही रहकर पढ़ाई करे
और अगर फिर भी दिल्ली छोड़ कर जाना ही है तो
तीन महीने बाद फाइनल एग्जाम देकर चला जाए
अरुण को ये बात समझ में आयी
उसने कॉलेज जाना काफी कम कर दिया
और अब वो अपने रूम पे ही रहकर
पूरा-पूरा दिन बस पढ़ाई करता रहता था
अब रुखसार जी ने उसे एक और सुविधा भी दे दी
उन्होंने बहुत थोड़े से एक्स्ट्रा पैसों के एवज़ में
अरुण के तीनों समय के खाने की जिम्मेदारी भी ले ली
वो दो लोगों का खाना तो पहले भी बनाती ही थी
तो अब तीन का बनाने लगी
अरुण को भी बहुत आराम हो गया था
अरुण को अब अपने हाथ के कच्चे-पक्के की बजाय
रोज़ अच्छा ,स्वादिष्ट और गर्म खाना मिलने लगा था
उसका खूब समय भी बचने लगा था
इस सारे झमेले का और एक बहुत बड़ा फायदा
अरुण को ये हुआ की
जब दोस्त छूट गए
तो टाइम वेस्ट करने वाले सारे काम बियर,पार्टियां,मूवीज भी बंद हो गए थे
तो अब केवल पढ़ाई पे फोकस था
और जब रिजल्ट आया तो पूरा कॉलेज हैरान था
फ़्रेशी अरुण झा फर्स्ट ईयर ने अपने सब्जेक्ट में पूरे कॉलेज में टॉप किया था
कुछ दिन बाद कॉलेज मैनेजमेन्ट ने
फर्स्ट ईयर और सेकंड ईयर स्टूडेंट्स के साथ मिलकर
फाइनल ईयर स्टूडेंट्स के लिए एक फेयरवेल पार्टी रखी थी
अरुण वहां आना तो नहीं चाहता था
पर सभी प्रोफेसर्स चाहते थे की
सारे टॉप करने वाले स्टूडेंट्स जरूर आयें
क्योकि सब टॉप स्टूडेंट्स को ट्रॉफी दी जानी थी
अरुण को आना पड़ा
स्टेज पे सब का नाम पुकारा जा रहा था
ट्रॉफी दी जा रही थी
खूब तालियां बज रही थी
अरुण सब से छुपा-छुपा सा एक अँधेरे कोने में खड़ा था
नाम पुकारा गया "अरुण झा "
अरुण ने महसूस कर लिया था की
उसके लिए एक्का-दुक्का ही ताली ही बजी थी
वो सहमा सा स्टेज पे पहुँचा
अपनी ट्रॉफी ली
सामने देखा तो
स्टेज के बिलकुल सामने
पहली पंक्ति में
फिर वही "चुड़ैल " खड़ी थी
वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी
अरुण स्टेज से उतरकर हॉल के बाहर जाने लगा
फिर ना जाने क्या सोचकर वो वापिस मुड़ा
अब वो उस चुड़ैल के ठीक सामने खड़ा था
अपने दोनों हाथ जोड़ कर अरुण ने बस इतना कहा
" नीना जी, मुझे माफ़ कर दीजिये "
नीना धीरे से हँसी थी
वो भी बस इतना ही बोली
" इट्स ओके फ़्रेशी "
अब मैं तेरे शहर जा रही हूँ पढ़ने
I I M पटना "
अरुण की तो जैसे
पूरी ज़िंदगी ही बदल गयी थी
कॉलेज में सब लोग उसे आता-जाता देख कर हँसते थे
सीनियर्स उसको आते-जाते ऐसे लुक देते थे
जैसे कच्चा ही चबा जाएंगे
उसके अपने फ़्रेशी दोस्त भी सीनियर्स के डर के मारे
ना उससे मिलते थे
ना उससे बात करते थे
कॉलेज की सारी लड़कियों के लिए वो ऐसे था
जैसे वो कोई रेपिस्ट हो
अब अपनी क्लास में भी वो अकेला ही बेंच पे बैठता था
अरुण के मन में हर रोज़ ये ही ख़याल आता था की
क्यों ना वो ये कॉलेज छोड़ के
वापिस पटना ही चला जाए
इसी परेशानी में
एक दिन उसने अपनी मकान मालकिन को बोला की
वो रूम खाली कर रहा है
कृपया उसका डिपोसिट वो वापिस दे दें
मकान मालकिन रुखसार जी एक विधवा औरत थी
जिनकी केवल एक ही बेटी थी
अपने इसी घर के एक फ्लोर पे वो खुद रहती थी
और उनके घर-गुजर का केवल एक ही साधन था
उनके इस घर के बाकी तीन फ्लोर्स से आ रहा किराया
उनका ये घर युनिवेर्सिटी एरिया के पास था
तो अधिकतर स्टूडेंट्स ही उनके किरायेदार होते थे
अब सेशन के बीच में ना तो उन्हें कोई और किरायेदार मिलना था
और ना उनके पास वो तीन महीने की सिक्योरिटी वापसी देने का कोई
इंतज़ाम था
तो उन्होंने अरुण को बात करने के लिए बुलाया
वो जानना चाहती थी की
वो पढ़ाई के साल के बीच में ही क्यों वापिस जाना चाहता है
अरुण क्या बताता
हर आदमी अपनी कहानी अपनी सुविधा से ही सुनाता है ना
अब कहाँ कोई गांधी है
की सच बोल दे की उसने क्या चोरी की है
तो अरुण ने भी रुखसार जी को बस इतना बताया की उसे
कॉलेज के कुछ सीनियर्स परेशान कर रहे है
इसलिए उसका दिल यहाँ दिल्ली में नहीं लग रहा है
रुखसार जी ने भी दुनिया की सारी उठा-पटक झेली हुयी थी
और उनके खुद के हक़ में भी यही था की
अरुण कमरा खाली ना करे
तो उन्होंने अरुण को पढ़ाई में दिल लगाने के लिए समझाया
कहा की कॉलेज में कोई परेशानी है तो
कॉलेज कम जाये
रूम में ही रहकर पढ़ाई करे
और अगर फिर भी दिल्ली छोड़ कर जाना ही है तो
तीन महीने बाद फाइनल एग्जाम देकर चला जाए
अरुण को ये बात समझ में आयी
उसने कॉलेज जाना काफी कम कर दिया
और अब वो अपने रूम पे ही रहकर
पूरा-पूरा दिन बस पढ़ाई करता रहता था
अब रुखसार जी ने उसे एक और सुविधा भी दे दी
उन्होंने बहुत थोड़े से एक्स्ट्रा पैसों के एवज़ में
अरुण के तीनों समय के खाने की जिम्मेदारी भी ले ली
वो दो लोगों का खाना तो पहले भी बनाती ही थी
तो अब तीन का बनाने लगी
अरुण को भी बहुत आराम हो गया था
अरुण को अब अपने हाथ के कच्चे-पक्के की बजाय
रोज़ अच्छा ,स्वादिष्ट और गर्म खाना मिलने लगा था
उसका खूब समय भी बचने लगा था
इस सारे झमेले का और एक बहुत बड़ा फायदा
अरुण को ये हुआ की
जब दोस्त छूट गए
तो टाइम वेस्ट करने वाले सारे काम बियर,पार्टियां,मूवीज भी बंद हो गए थे
तो अब केवल पढ़ाई पे फोकस था
और जब रिजल्ट आया तो पूरा कॉलेज हैरान था
फ़्रेशी अरुण झा फर्स्ट ईयर ने अपने सब्जेक्ट में पूरे कॉलेज में टॉप किया था
कुछ दिन बाद कॉलेज मैनेजमेन्ट ने
फर्स्ट ईयर और सेकंड ईयर स्टूडेंट्स के साथ मिलकर
फाइनल ईयर स्टूडेंट्स के लिए एक फेयरवेल पार्टी रखी थी
अरुण वहां आना तो नहीं चाहता था
पर सभी प्रोफेसर्स चाहते थे की
सारे टॉप करने वाले स्टूडेंट्स जरूर आयें
क्योकि सब टॉप स्टूडेंट्स को ट्रॉफी दी जानी थी
अरुण को आना पड़ा
स्टेज पे सब का नाम पुकारा जा रहा था
ट्रॉफी दी जा रही थी
खूब तालियां बज रही थी
अरुण सब से छुपा-छुपा सा एक अँधेरे कोने में खड़ा था
नाम पुकारा गया "अरुण झा "
अरुण ने महसूस कर लिया था की
उसके लिए एक्का-दुक्का ही ताली ही बजी थी
वो सहमा सा स्टेज पे पहुँचा
अपनी ट्रॉफी ली
सामने देखा तो
स्टेज के बिलकुल सामने
पहली पंक्ति में
फिर वही "चुड़ैल " खड़ी थी
वो मंद-मंद मुस्कुरा रही थी
अरुण स्टेज से उतरकर हॉल के बाहर जाने लगा
फिर ना जाने क्या सोचकर वो वापिस मुड़ा
अब वो उस चुड़ैल के ठीक सामने खड़ा था
अपने दोनों हाथ जोड़ कर अरुण ने बस इतना कहा
" नीना जी, मुझे माफ़ कर दीजिये "
नीना धीरे से हँसी थी
वो भी बस इतना ही बोली
" इट्स ओके फ़्रेशी "
अब मैं तेरे शहर जा रही हूँ पढ़ने
I I M पटना "
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