Tuesday, June 9, 2020

मोगरे के फूल



" प्रिया ,
बरसों बाद 
तुम्हारे अपने घर के आँगन में  
मोगरे के फ़ूल खिले हैं
खुशबू से घर-भर महक रहा है 
वापिस आ जाओ ना "

कॉलेज में शेखर और प्रिया गहरे मित्र थे
इतने गहरे
हर किसी को लगता
दोनों एक-दूसरे के प्यार में हैं
पर वो दोनों दुनिया से दूर
अपने में मस्त
अपने साथ को कोई नाम में
वो दोनों बांधते ही नहीं थे
वो तो बस
अपनी मित्रता को,
एक-दूसरे को प्रेम देने ने,
केयर करने में
एक-दूसरे को जीवन की
कठिन स्तिथी में साथ देने में
मशगूल रहते
संक्षिप्त में
दोनों को बस
एक-दूसरे का साथ भाता था

कॉलेज ख़त्म हुआ
दोनों दौड़े अपने-अपने क्षितिज को छूने
क्षितिज दोनों के अलग-अलग थे
शेखर कवि प्रवृति
प्रिया भौतिकवादी
कुछ सालों में
दोनों ही कामयाब हुए थे
शेखर की कवितायेँ,कहानियां छपने लगी
प्रिया एक मल्टीनेशनल में उच्च पद पर पहुँच गयी
अचानक एक दिन
पूरी दुनिया को ख़याल आया
उनकी शादी का
पूरी दुनिया ने बहुत ढूंढा
दोनों को कई लोगों से भी मिलाया
पर कुछ जमा नहीं

बरसों बाद
कॉलेज रीयूनियन में
दोनों फिर से मिले
वही दोस्त
वही लाइब्रेरी
वही छत्त पर प्रेमियों के मिलने के लिए एकांत कोने
वही मोगरे के फूलों की
खुशबू बिखेरती क्यारियां
वही कैंटीन

सब हैरान थे,
कैसे
प्रिया और शेखर साथ नहीं हैं
उन्हें तो होना चाहिए था
उन सब के जताने से
अब प्रिया और शेखर को भी लगा
हाँ
क्यों नहीं
ठीक रहेगा
बस बँध गए दोनों बंधन में
पूरी दुनिया अब खुश थी
की चलो बँधे तो
दोनों आ गए ,शेखर के घर
उपहार स्वरूप ,मित्रों ने
मोगरे के फूलों का पौधा भेंट दिया था
प्रिया ने बड़े प्यार से
उस पौधे को
आँगन में एक पूरा आसमान दे दिया
जहाँ से पूरी कायनात दिखती थी
सूरज रोज़ जीवन दे पाता था
रात में चाँद और तारे बातें कर पाते थे
मौसम आता तो उस पौधे में मोगरे के अनगिनत फूल खिलते
खुशबू से पूरा घर भर महकता

दो-तीन मौसम बाद शेखर को लगने लगा
खुशबू घर के बाहर तक आती है
आते-जाते लोग फूल तोड़ना चाहते हैं
उसने पौधे को घर के अंदर रख दिया
सुरक्षित
पौधे ने खूब समझाया था
पर शेखर नहीं माना
और अब
अब पौधा मुरझाने लगा था
और एक दिन खुशबू कहीं खो गयी

अगले कई मौसम ऐसे ही
पतझड़ ही निकल गए
मौसम आते चले जाते 
पर फूल
फूल आते ही नहीं थे
और एक उदास दिन 
जब सावन की पहली बारिश आयी 
उदास शेखर बाहर आँगन में आ गया
और अतृप्त सा बारिश में भीगने लगा
शेखर का तन-मन-आत्मा सब सराबोर हो रहे थे 
अचानक बारिश ने रूककर 
धीरे से शेखर से कहा
"पौधा भी तो बस इतना ही चाहता था ना"
शेखर भागता सा गया और
लाकर पौधे को फिर से वही रख दिया
उसी जगह
जहाँ
जहाँ से पूरा आकाश दिखता था
सूरज रोज़ जीवन दे पाता था
रात में चाँद और तारे बातें कर पाते थे
और कुछ ही दिन बीते थे
उस पौधे में फिरसे अनगिनत फूल खिले
खुशबू से पूरा घर भर महकने लगा

बदहवास से शेखर ने प्रिया को फोन मिलाया
प्रिया धीरे से बोली
" बोलो शेखर "
शेखर रुंधे गले से
बस इतना ही बोल पाया
" प्रिया ,
बरसों बाद 
तुम्हारे अपने घर के आँगन में  
मोगरे के फ़ूल खिले हैं
खुशबू से घर-भर महक रहा है 

वापिस आ जाओ ना "


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