Tuesday, June 23, 2020

विधवा ,( कहानी ), 9


कुछ दिनों से शारदा जी अनुज में अजीब सा बदलाव नोटिस कर रहीं थीं
ना वो ठीक से खा रहा था
ना हँसता खिलखिलाता था
बस गुमसुम सा अपने कमरे में घुसा रहता
बात करने से बात तो करता पर बस हाँ-हूँ वाली बातचीत
शारदा जी से रहा न गया
एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया
"अनुज सच-सच बता ये क्या है ?
कहीं तू कोई ड्रग्स वगैराह .... "

अनुज फीकी सी हंसी हँसा था
"क्या माँ आप भी ना
नहीं माँ कोई ड्रग्स-फ्रूग्स नहीं करता "
"आपका बेटा हूँ
आपको इतना भी विश्वास नहीं है क्या "

"फिर क्या बात है ?"
शारदा जी आज छोड़ने वाली नहीं थीं

"माँ मुझे सरला से प्यार है ? "
धीरे से बोलै अनुज ने

"तुझे
तुझे सरला से
तुझे पता है क्या कह रहा है तू ? "
शारदा जी चिंतित स्वर में बोली थी
अनुज चुप ही रहा
वो दोनों कुछ देर चुपचाप बैठे रहे
कुछ देर बाद भी सरला जी ही बोली
"अनुज वो विधवा है
किसी की पत्नी थी वो
मालूम है ना ? "
कुँवारी नहीं है वो "

"तो माँ मैं भी कहाँ कुंवारा हूँ "
अनुज ने धीरे से कहा था

"क्या
क्या कहा तूने ?
फिर खुद ही जाने क्या समझते हुए शारदा जी बोली थी
"अनुज तू लड़का है
तुझे सब माफ़ है
पर वो किसी और की बीवी थी
झूठी थाली है वो "

अनुज का मन तो चाहा की माँ को बता दे के उस थाली को आपके बेटे ने भी चखा है माँ
पर शर्म कहें या अपना अपराध कहने से बचना ,
अनुज इस बात पर चुप ही रहा
"सब जान कर भी मैं सरला से शादी करना चाहता हूँ माँ "

"तू पागल हो गया है अनुज
ये शादी नहीं हो सकती "
"कभी नहीं हो सकती "
सरला जी गुस्से में उठकर अपने कमरे में चली गयी
और उन्होंने उसी गुस्से में सरला को फोन मिलाया।

Writer-Manoj Gupta,   manojgupta0707.blogspot.com





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