"अनुज ,
मैं आश्रम वापिस जा रही हूँ
रात जो हुआ
तुम खुद को दोष मत देना
शायद मैं ही सालों से उपेक्षित थी
तुमने ज़रा सा सहारा क्या दिया....
पर अब इस घर में मेरा रहना ठीक नहीं
सो मैं जा रही हूँ
-सरला "
अनुज देर से सोकर उठा था
टेबल पे उसका नाश्ता रखा था
और सरला की ये चिठ्ठी
माँ आने वाली थी तो
उसने जल्दी से चिठ्ठी को जेब में रखा
सरला को फोन मिलाया
बंद था
अनुज ने फटाफट नाश्ता किया
और माँ की प्रतीक्षा करने लगा
"पर अनुज वो अचानक कैसे चली गयी ?
वो भी अकेली
मेरे आने की वेट भी नहीं की उसने
मुझसे तो मिल कर जाती "
आते ही शारदा जी चिंचित स्वर में बोल रही थी
"अब माँ ये तुम उसी से फोन करके पूछ लो
मुझसे तो सुबह-सुबह बोली की
आश्रम की,
गुरूजी की बहुत याद आ रही है
जा रही हूँ
माँ जाने नहीं देंगीं
इसलिए बिना मिले जा रही हूँ "
अनुज ने एक सांस में कई झूठ बनाये
और शारदा जी को निरुत्तर कर दिया
शारदा जी गहन सोच में पड़ गयी थी
सरला का फोन मिलाया, बंद था
आश्रम में फोन किया तो पता चला सरला अभी वहाँ पहुँची नहीं थी
फिर शारदा जी सफर से थकी आईं थी
तो आराम करने अपने कमरे में चली गयी
शाम को सरला ने शारदा जी को फोन किया
"माफ़ कीजियेगा माँ
पर अचानक मन उजाड़ सा हो गया था
सो चली आयी
हफ्ते-दस दिन में आ जाउँगीं
आप मेरी चिंता ना करे "
शारदा जी के बहुत मनाने-समझाने के बाद भी सरला तुरंत आने को नहीं मानी
और अगले दिन से शारदा जी के तो सारे घर के व्यवस्था ही जैसे बिगड़ गयी थी
उन्हें ना कोई रसोई का सामान जगह पर मिल रहा था
न घर का कोई काम हो पा रहा था
खाना फिर वही पहले की तरह कच्चा-पक्का बन रहा था
दस-पंद्रह दिनों में ही घर पहले की ही तरह बिखरा-बिखरा सा हो गया था
साफ़ दिख रहा था की कोई बहुत ही गुणी व्यक्ति घर से चला गया है
सरला का सेवा-भाव,
उसकी मेहनत ,
उसका प्यार ,
उसकी साधना
शारदा जी और अनुज दोनों पर अलग-अलग असर डाल रही थी
सरला की कमी दोनों को खूब खल रही थी
सरला जी तो हर समय ये बात अनुज से कहती ही रहती थी की
सरला ऐसी थी,
सरला वैसी थी ,
तू उसे जाकर ले आ
पर अनुज,
अनुज तो कुछ कह भी नहीं सकता था
जब तक सरला थी
अनुज ने ढंग से कभी सरला से बात भी नहीं की थी
और जाते-जाते जो हुआ था
उसके बारे में अनुज बिलकुल भी समझ नहीं पा रहा था की वो क्या था ?
क्या वो बस जिस्म था
या उसमे कहीं कोई आत्मा भी थी
या कोई प्यार भी था
अनुज को नहीं पता चल रहा था
बस इतना था की वो बेचैन था सरला के जाने से
इधर सरला को गए एक पूरा महीना हो गया था
घर फिर साफ़ रहने लगा था
अच्छा खाना बनाने वाले एक महाराज भी मिल गए थे
जिंदगी पहले की तरह हो गयी थी
पर अनुज के मन की ये बेचैनी थी की ख़त्म ही नहीं हो रही थी
और एक दिन
शारदा जी ने अनुज को बताया की पड़ोस की उनकी सहेली शान्ति जी सरला के बारे में पूछ रहीं थी
"अब ये शांति आंटी को सरला का क्या पूछना है ?"
अनुज ने खाना कहते-कहते माँ से पुछा था
"अनुज वो शांति चाहती है की अंकुर और सरला का ...."
शारदा जी ने बात अधूरी छोड़ दी थी
अनुज के हाथ का कौर हाथ में ही रह गया
"माँ आपको पता है वो अंकुर कैसा है ?"
"वो ठीक नहीं है सरला के लिए "
"उसका चरित्र ठीक नहीं है "
अंकुर गुस्से में आपा खो बैठा था
और खाना बीच में ही छोड़कर गुस्से में अपने कमरे में चला गया
शारदा जी सोच रही थी की अगर अंकुर में कुछ कमी-बेशी है भी तो क्या
लड़का है और थोड़ी-बहुत कमी-बेशी तो लड़कों में चलती है
और सरला भी कौन दूध की धुली है
विधवा है
अंकुर तो एहसान ही करेगा सरला पर।
Writer- Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com
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