देखो, उम्मीद का सूरज दमक रहा
मैं अपने गांव को ताक रहा
बरसों-बाट जोह रहा था मैं
आखिरकार मैं पहुँच ही गया
चार-पहियों का इंतज़ार छोड़
दो-पहियों पर ही आया हूँ
मोटर हमसे शर्मिन्दा थी
सो पैरो-पैरों भी लाया हूँ
सब बोले थे,नहीं पहुंचोगे तुम
लाठी-डंडा ही खाओगे तुम
खाना-पानी मिला ना मिला
हिम्मत के साथ मैं बढ़ा चला
मीलों,सदियों सा था ये सफर
अपनी हिम्मत से जीत लिया
शहर की उन चमकीली सड़कों से
अपनी गांव -पगडंडी खूब भली
हरियाली हर ओर यहाँ
मिटटी की खुशबू आये रही
अब लौट के ना मुझे जाना है
अपने गांव में ही रहना है
अपना पसीना अपना विकास
अपने गांव को स्वर्ग बनाना है
देखो, उम्मीद का सूरज दमक रहा
मैं अपने गांव को ताक रहा
बरसों-बाट जोह रहा था मैं
आखिरकार मैं पहुँच ही गया
आखिरकार मैं पहुँच ही गया।
#mazdoor #मज़दूर
Writer- Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com
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