Tuesday, June 23, 2020

विधवा ,( कहानी ), 10


"अनुज आपने ये क्या किया ?
ये आपने माँ को क्या बोल दिया
माँ का फोन आया था
बहुत दुखी थी वो
अनुज बरसों बाद शायद मेरी जिंदगी में कुछ अच्छा होने को है
अंकुर मुझसे शादी करना चाहता है
क्या आप मुझे खुश नहीं देखना चाहते ?
आपकी जिंदगी सुनहरी है अनुज
उसमे मेरे विधवा जीवन का दाग मत लगाइये
लाखो लडकियां आएंगी आपके लिए
कुंवारी,सुन्दर
आपके काबिल "
सरला फोन पर लगातार बोले जा रही थी

अनुज चुपचाप सुने जा रहा था
सरला का एक-एक शब्द दर्द में डूबा हुआ था
और फिर सरला ने फोन रख दिया

उस दिन की बातचीत के बाद सरला ने अनुज का फोन उठाना ही बंद कर दिया था
अनुज की बेचैनी बढ़ती जा रही थी
तो एक दिन उसने गाड़ी उठाई और पहुंच गया गुरूजी के आश्रम में
सरला उसे अचानक आया देख हैरान थी
और अनुज का हुलिया देख वो और भी परेशान हो गयी थी
दाढ़ी बढ़ी हुयी थी
कपडे बेमेल थे
चेहरा उतरा हुआ
"अनुज आप    आप ठीक तो हैं ?
ये क्या हाल बना रखा है आपने
आप बीमार हैं क्या ? "
बेचैनी से पूछा था सरला

"नहीं सरला मैं तुम्हारे बिना बिलकुल ठीक नहीं हूँ "
"तुम मान जाओ ना "
"मैं खुश रखूंगा तुम्हें "- बेचारगी के अंदाज़ में बोल रहा था अनुज

"अनुज आखिर आपने मुझे मजबूर कर दिया है
अपने जीवन का वो काला सच बताने के लिए
ये सुनने के बाद आप खुद मुझसे नफरत करने लगोगे "
"मैंने ये सच आज तक किसी को नहीं बताया
आपको बता रहीं हूँ "

"मैं एक अनाथ हूँ
मुझे नहीं पता मेरे माँ बाप कौन थे
अनाथाश्रम में पली
वहां सब लड़कियों के साथ व्यभिचार होता था
मेरे साथ भी हुआ
सरला नीचीं नज़रें किये धीरे-धीरे बोले जा रही थी
और अनुज का दिल डूबता जा रहा था
"अठारह की हुयी तो एक सामूहिक विवाह उत्सव में मेरी भी शादी कर गयी
पति उम्र में काफी बड़े थे
पर अच्छे थे
पर शराब और हर तरह के नशे के आदी थे
मैंने बहुत समझाया ,
नहीं मानते थे
एक दिन शराब के नशे में सड़क दुर्घटना में मारे गए
मैं एक बार फिर बेघर हो गयी
और फिर गुरूजी के इस विधवाश्रम में आ गयी
यहीं माँ से मुलाकात हुयी थी
और वो मुझे आपके घर ले आईं थी "

सरला और अनुज दोनों खामोश अपने में ही गुम थे
कुछ देर बाद सरला उठी और अपने कमरे की ओर चलने लगी
मन शांत था
चेहरे पे मुस्कराहट थी
जो वो पता करना चाहती थी
पता चल गया था
आखिर बड़ी मुश्किल से तो वो बंधनों से आज़ाद हुयी थी
अब क्यों बंधें वो किसी नए बंधन में ?
जिसमे उसे बस देना ही देना है
वो भी सामने वाले के आदेश पर
रहमोकरम पर
यहाँ कोई उससे कुछ नहीं पूछता
उसको उसके अतीत के हिसाब से जज नहीं करता
यहाँ सबकी अपनी ही एक दुःख भरी कहानी है
और फिर
आज यहां सब कुछ तो है उसके पास
रहने को घर, संगी-साथी और सबसे बढ़कर
"आज़ादी "
अपने मन से जीने की
मन का करने की

और रहा शरीर का सुख
तो उसका क्या है
जब मन चाहा
जरा हाथ बढ़ाया और ले लिया

और फिर सरला ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा।

Writer-  Manoj Gupta , manojgupta0707.blogspot.com



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