Saturday, June 20, 2020

विधवा ,( कहानी ), 2


सरला के घर आ जाने से
शारदा जी का तो जैसे पूरा जीवन ही बदल गया
पिछले २२ साल से सारे घर का काम खुद अकेले करते हुए
उन्हें खुद को कभी कहाँ आराम मिला था
अब सरला के आने के बाद
शारदा जी को उनकी दवाइयां समय पे मिलती
मनचाहे समय-असमय
हलवा, चाय, सैंडविच
और भी जो वो खाना चाहें खाने को मिलता
रोज़ रात को पैर दबवाने का सुख मिलता
और घर तो हमेशा ऐसा चमका-दमका दिखता,
जैसा पहले कभी दिखा ही नहीं
सरला ने खुद ही शारदा जी से कहकर खाना बनाने वाली बाई को हटवा दिया था
अब सारा खाना सरला ही बनाती थी

यूँ तो सरला के इन गुणों का बराबर फायदा अनुज को भी हो रहा था
अब अनुज को भी अपनी पसंद का खाना मिलने लगा था
ताज़ा, गर्म , उसके कॉलेज से घर आते ही
अनुज को अपना कमरा हमेशा व्यवस्थित मिलता
सारे कपडे हमेशा प्रेस किये हुए सलीके से अलमारी में टंगे मिलते
वो जब रात को स्टडी करने बैठता तो
उसे अपना कॉफ़ी-थर्मस भरा हुआ
बिलकुल वही मिलता,
स्टडी टेबल पर , फ्लावर वास के पास
हर रोज़ , पता नहीं कैसे
वो रोज़ कुकीज़ खाता
पर उसका कूकीज जार उसे हमेशा भरा ही मिलता
और एक दिन .....

" मेरा कुछ था उस ड्रावर में
अब मिल नहीं रहा
तूने देखा क्या ? "
सरला को अपने कमरे में बुलाकर बड़ी बदतमीज़ी से बोला था अनुज
"जी वो सिगरेट का पैकेट ?
वो मैंने फेंक दिया "
सर झुका कर धीरे से जवाब दिया था सरला ने
"तूने फेंक दिया ?
क्यों ?
जलती हुयी निगाहों से सरला को देखते हुए जोर से चिल्लाया था अनुज
इतना जोर से ,
के बराबर के कमरे से शारदा जी भागती सी आईं
"क्या हुआ ?
क्या हुआ अनुज ?
तू इतना चिल्ला क्यों रहा है "

माँ को सामने देख अनुज अब बौखला गया था
दो महीने पहले ही शारदा जी ने उसे सिगरेट पीते हुए पकड़ा था
और अनुज को अपनी कसम दी थी की वो अब कभी सिगरेट नहीं पियेगा
अनुज दर सा गया और बौखलाहट में बोल बैठा
"मेरे पैसे थे यहाँ ड्रावर में ,
नहीं मिल रहे "

"अरे कितने पैसे थे ?
 शारदा जी चिंतित हो गयी थी
"पांच हज़ार "
"जरूर इसी ने लिए है "
अनुज ने एक और झूठ बोला

"सरला ,
बेटी देख अगर तूने पैसे लिए हैं
तो बता दे
मैं कुछ नहीं कहूंगी ? "
शारदा जी की ये बात सुनकर सरला तो जैसे अवाक
उसने डबडबाई कातर आँखों से शारदा जी से बस इतना कहा
"माँ आप चाहो तो मेरे सामान की तलाशी ले लो
मैं चोर नहीं हूँ
मैं चोर नहीं हूँ माँ "

सरला की आवाज़ की दयनीयता से शारदा जी का मन पिघल गया था
उन्होंने अनुज को कमरा फिर से चेक करके पैसे ढूंढ़ने आदेश दिया
और सरला को पुचकारते हुए अपने साथ बाहर ले आईं
उधर अनुज मन ही मन सोच रहा था
"साली है बड़ी नाटकबाज़"
"कितनी जल्दी टेसुए बहाएं हैं ".






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