Wednesday, June 10, 2020

धीरे चलो



जब कान्हा ने सारे कायनात रच दी
अब समय था
सारी साधन-सम्पदा को मनुष्टों के बीच बांटने का
इस कार्य के लिए कान्हा ने एक दौड़ का आयोजन किया
ये दौड़ एक निश्चित दिन सूर्योदय के साथ शुरू हुयी
नियमानुसार सभी मनुष्यों को एक निश्चित दूरी पूरी कर
सूर्यास्त होने से पहले कान्हा के पास ही वापिस आना था
कान्हा ने उस पूरे रास्ते में जगह-जगह सारे साधन-सम्पदा
सोना, चांदी ,हीरे -जवाहरात,
हर तरह के मनोरंजन के साधन , रास-रंग इत्यादि स्थापित कर दिए थे
रास्ते में जिस मनुष्य का जहाँ मन हो ,जितनी देर चाहे रुक सकता था
आनंद ले सकता था
जिसे जो कुछ साधन-सम्पदा अच्छी लगे  ,उसे अपने साथ ले जा सकता था
सभी मनुष्य दौड़े
सूर्यास्त होते ही दौड़ समाप्त हो गयी

-कुछ थोड़ा सा दौड़े , विरक्त हो गए ,कान्हा की शरण में वापिस आ गए
-कुछ रास्ते के रास-रंग में इतना खोये , कभी वापिस आ ही नहीं पाए
-कुछ अपने कन्धों पे सोना-चांदी,हीरे-जवाहरात लादते रहे लादते रहे , ना समय का ध्यान रहा और ना सूर्यास्त होने का , वो सब किसी वीराने में , अकेले , अपने ही लादे सामान के बोझ तले दबकर मर गए
-कुछ पूरे रास्ते के आन्दोत्सव को निहारते, अपनी शारीरिक , मानसिक , क्षमतानुसार सोना-हीरे जवाहरात सहेजते , समय का ध्यान रखते सूर्यास्त से पहले ही वापिस आ गए

असल में ये सब हम सब ही हैं :)

इन दिनों अचानक (कोरोना-काल में )
हमारे चाहे बिना ही
जीवन धीमा हो चला है
मुझे लगता है
कान्हा ने तो इसे आरम्भ में ही धीमा ही बनाया था
हम ने इसे तेज़
बहुत तेज़ कर दिया था
तो शायद कान्हा ने ही फिर से इसे धीमा कर दिया
ताकि हमें समय मिलें
और हम सोचे
के हम किस दिशा में और क्यों दौड़े जा रहे हैं

कभी हम किसी छोटे शहर के भीड़ भरे बाज़ार में पैदल निकले हों
तो इमेजिन करें
कैसे एक-एक व्यक्ति ,एक-एक दूकान ,एक-एक गोलगप्पे वाला साफ़ दिखाई देता है
पैदल हैं तो कहीं भी रुक सकते हैं
चाहें तो गोलगप्पे भी खा सकते है
अगर गाड़ी में होते तो पार्किंग ही ढूंढ़ते रह जाते
और आखिर में बिना गोलगप्पे खाये
झुंझला कर फिर से वापिस गाड़ी में ही बैठ जाते

बहुत सालों पहले
जब पापा ने मुझे मेरी पहली मोटरसाइकिल दिलाई थी
तो मैं तो इतना आदी हो गया था की
पापा को कहना पड़ा था
"अब बाथरूम भी मोटरसाइकिल पे जाएगा क्या ? " :)
क्युकी मैं पड़ोस की दूकान से ब्रेड लेने भी मोटरसाइकिल पे ही जाने लगा था
हम सब भी शायद कुछ ऐसे ही हो गए हैं
गाड़ी की तेज़ गति में भूल गए हैं
गाड़ी तो केवल एक साधन मात्र है 
"गंतव्य पर पहुंचने के लिए "
और गंतव्य भी बस एक मिथ्या भ्रम ही तो है 
जीवन एक सफर है 
सफर में ही आनंद है 

और सफर का आनंद ही तो हमारी मंज़िल है"

मेरे मित्र सुशिल ने एक बार जो कहा था
कितना सटीक था
मैंने सुशिल को अपने एक और मित्र विकास से मिलवाया था
जो CA हैं और बहुत ही शांत संयमित व्यक्ति हैं
विकास को अच्छे से जानने के बाद एक दिन सुशिल मुझसे बोला
"यार मनु हम बेकार ही इधर भाग-उधर भाग ,ये खरीद वो बेच,
ये रिस्क ले ले
करते रहतें हैं
लॉन्ग टर्म में मतलब कोई 25 साल की दौड़ के बाद
आज मैं और विकास लगभग बराबर हैं
मैं जीवन में खूब तेज़ भागा
बहुत सारी रातें टेंशन में ,बिना सोये काटी
कभी-कभी ऐसा भी हुआ की परिवार को, दोस्तों को चाह कर भी समय नहीं दे पाया
इस तेज़ भागने , टेंशन लेने में में कई बीमारिया बीपी ,शुगर भी अनचाहे ही हो गयीं
आज मेरे पास एक घर है, गाड़ी है , कुछ इंवेस्टमेंट्स हैं
उधर विकास ने धीरे-धीरे चलकर जीवन का भरपूर आनंद लिया
आज उसके पास भी मेरे जैसे ही
एक घर है, गाड़ी है , कुछ इंवेस्टमेंट्स हैं
तो इस दौड़-भाग का मुझे फालतू क्या फायदा हुआ
बस मुफ्त में सफर का आनंद ही गंवाया ना ??

हम भी अगर धैर्यपूर्वक अपनी जीवन यात्रा पे विचार करेंगे , तो  निष्कर्ष यही मिलेगा 

धीरे चलो , सहज चलो , निरंतर चलो , सफर का आनंद लेते हुए चलो , थको तो रुको , आराम करो , फिर से चलो , धीरे चलो , सहज चलो , निरंतर चलो , सफर का आनंद लेते हुए चलो....

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कान्हा- प्रकृति,ईश्वर,अल्लाह,गॉड
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