Wednesday, June 3, 2020

एक आवारा बादल था

ये पोएम
आज ख़ास हमारी शादी की 24 वीं वर्षगाँठ ( 3 जून ) पर
मेरी हम-नफ़स,
मेरी हम-नवां
मेरी हम-कदम  ,
मेरी हम-सफर
मीनू को उपहार स्वरुप
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एक आवारा बादल 
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एक आवारा बादल था
थोड़ा सा ,कुछ तो
बहका हुआ था मैं
तुम आयीं तो ,स्थायित्व आया 
जाना के कितना,
और कहाँ तक 
भटका हुआ था मैं 

एक तुम्हारे आने भर से 
सारे मौसम
बदलने लगे थे 
दिन दिलफरेब हो गए 
रातें मधुमास बन गयी थी मेरी 
तब जाके जाना था मैंने की,
बरसों से ,सदियों से 
कितना प्यासा रहा था मैं 

मिलकर तुमने-मैंने
जो कुछ बुना था 
उन हसीन मधुमास पलों में 
देखो वो मधुबन,
कितना सुन्दर है
और कितना सात्विक
ये देख के आत्म-आभार तो है 
पर कहा कहाँ तुमसे कभी मैंने 
कह तो शायद अब भी ना पाऊँ कभी ,
क्युकी 
वो शब्द तो अब तक गढ़े ही नहीं जा सके  ,
जिनसे 
ये कह पाऊँ कभी तो मैं 

क्यों नहीं देख लेती
तुम खुद ही 
मेरी आत्मा में झांककर
किसी पल में ,
के पाकर तुमको
अपने जीवन में 
कितना कृतज्ञ हुआ हूँ मैं 

एक आवारा बादल था
थोड़ा सा ,कुछ तो
बहका हुआ था मैं 
तुम आयीं तो स्थायित्व आया 
जाना के कितना
और कहाँ तक 
भटका हुआ था मैं।

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