ये पोएम
आज ख़ास हमारी शादी की 24 वीं वर्षगाँठ ( 3 जून ) पर
मेरी हम-नफ़स,
मेरी हम-नवां
मेरी हम-कदम ,
मेरी हम-सफर
मीनू को उपहार स्वरुप
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एक आवारा बादल
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एक आवारा बादल था
आज ख़ास हमारी शादी की 24 वीं वर्षगाँठ ( 3 जून ) पर
मेरी हम-नफ़स,
मेरी हम-नवां
मेरी हम-कदम ,
मेरी हम-सफर
मीनू को उपहार स्वरुप
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एक आवारा बादल
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एक आवारा बादल था
थोड़ा सा ,कुछ तो
बहका हुआ था मैं
तुम आयीं तो ,स्थायित्व आया
बहका हुआ था मैं
तुम आयीं तो ,स्थायित्व आया
जाना के कितना,
और कहाँ तक
और कहाँ तक
भटका हुआ था मैं
एक तुम्हारे आने भर से
सारे मौसम
बदलने लगे थे
बदलने लगे थे
दिन दिलफरेब हो गए
रातें मधुमास बन गयी थी मेरी
तब जाके जाना था मैंने की,
बरसों से ,सदियों से
बरसों से ,सदियों से
कितना प्यासा रहा था मैं
मिलकर तुमने-मैंने
जो कुछ बुना था
जो कुछ बुना था
उन हसीन मधुमास पलों में
देखो वो मधुबन,
कितना सुन्दर है
और कितना सात्विक
कितना सुन्दर है
और कितना सात्विक
ये देख के आत्म-आभार तो है
पर कहा कहाँ तुमसे कभी मैंने
कह तो शायद अब भी ना पाऊँ कभी ,
क्युकी
क्युकी
वो शब्द तो अब तक गढ़े ही नहीं जा सके ,
जिनसे
जिनसे
ये कह पाऊँ कभी तो मैं
क्यों नहीं देख लेती
तुम खुद ही
तुम खुद ही
मेरी आत्मा में झांककर
किसी पल में ,
किसी पल में ,
के पाकर तुमको
अपने जीवन में
अपने जीवन में
कितना कृतज्ञ हुआ हूँ मैं
एक आवारा बादल था
थोड़ा सा ,कुछ तो
बहका हुआ था मैं
बहका हुआ था मैं
तुम आयीं तो स्थायित्व आया
जाना के कितना
और कहाँ तक
और कहाँ तक
भटका हुआ था मैं।
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